Sakshi Shukla  
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From shahdol
ब्राम्हण 🍁
स्व - रचित कविताएं......
Joined 2 December 2019


From shahdol
ब्राम्हण 🍁
स्व - रचित कविताएं......
Joined 2 December 2019
17 APR AT 13:26

वो आचरण क्या जो शब्दो तक को...
मर्यादा में ना रख पाता हो...
वो राज्य क्या जो
जमी के टुकड़े भर को भाई के खून का प्यासा हो..
वो जिसे झूठे फल क्या
सबरी का दिख जाना भी ना भाता हो..
त्याग, तप ,वचन ,चरित्र का जिसे ज्ञान नही
कर्मों में जिसके अंश भर भी राम नहीं ......
हे रघुवर....!!
ऐसा कोई कैसे खुद को दास आपका बतलाता है ..
कंठ भर से कहने से
क्या कोई राम भक्त बन जाता है.....

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2 FEB AT 22:25

!! राघव!!
राघव तुम चले आओ सिया ने पुकारा है
बिन तेरे वैदेही ने ,एक उम्र को गुजारा है....

हर वक्त तुमसे विनती है और आश भी तुम्हारी है
आखिर क्यों नहीं समझते तुम सीता बस तुम्हारी है...

मेरे हृदय के दर्पण में बस तेरा ही चेहरा है
हर वक्त मेरी धड़कन में यादों का कड़ा पहरा है....

मेरे श्रृंगार और मुस्कान पर बस एक नाम तुम्हारा है
रघुनंदन मेरे जीवन में सर्वोच्च स्थान तुम्हारा है.....

जानकी को मिथिला से तुम ही तो लेकर आए थे
अब साथ सिया के चलना ये फर्ज तुम्हारा है....

ले लो प्रतिज्ञा, प्रतीक्षा या परीक्षा कोई भी
सीता ना पीछे हटेगी अगर राघव विश्वास तुम्हारा है...

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25 JAN AT 23:04

Sometimes all u need is peace.. no phone no people, Just peace...

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6 JAN AT 21:53

माता का कोप पिता की पीड़ा
राम को फिर सब ज्ञात हुआ
उसी दिवस को रघुकुल रीति में
वचनों का मान विख्यात हुआ..

रखने तब लाज वचन का
सन्यासी सा रंग रूप धरे
ले आशीष मातपिता का
अनुज, सीता संग राम चले...

बिरह वेदना में लीन प्रजा
वशिष्ठ के हाथ कर चले
मर्यादा के मूरत रघुनाथ
अवध को अनाथ कर चले....

श्वास भी जैसे छूट रही हो
सारी नगरी त्राहिमाम पुकारे
वियोग विलाप का आर्तनाद
खग मृग भी राम पुकारे

नदी वायु सब शिथिल हुए
विरह शोक का तेज भयंकर
त्रास विदारक पुरी में फैला
अंधकार उत्पाद चरम पर..

विश्वस्त किए फिर आयेंगे
गुरुजनों को प्रणाम किए
बेसुध छोड़ अवध नगरी को
रघुनंदन वन प्रस्थान किए...

रघुनंदन वन प्रस्थान किए!


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6 JAN AT 21:40

!! वन गमन !!
कांप उठी थी चहों दिशा
ममता की माया नष्ट हुईं
वज्रपात हुआ रघुकुल में
कैकई की बुद्धि भ्रष्ट हुई..

दो वर ज्वाला जैसे फूटे
स्तब्ध हुआ आकाश भी
पुत्र भरत का राजतिलक
और राम को वनवास भी..

वचनों का आघात अवध पर
मति दुर्बुध्दि का वास हुआ
दबे पांव काल हुआ प्रविष्ट
दशरथ को हुआ आभास..

कैकई! ये कैसा वर मांगा?
प्राण ही क्यों न मांंग लिए
भरत को दे दूं राजसिंहासन
राम ने क्या अपराध किए?

चौदह वर्षो का वनवास !
यह वर मैं स्वीकांरु कैसे?
निकल जाए प्राण सहज हैं
सुत राम को निकालूं कैसे?















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1 DEC 2023 AT 21:30

कमल नयन , मुख सुंदर , ये बात तो जग आधा जाने ,,
प्रेम है कान्हा ‌से या स्वयं कान्हा प्रेम , ये बात तो केवल राधा जाने !

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25 JUN 2023 AT 22:59

सुध- बुध खो बैठी हूँ मेरे मन मोहन
तेरी मुरली की तान मे....
ना भाये मुरली के सिवा मेरे मन को
कोई और धुन इस पूरे जहान मे..

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14 MAY 2023 AT 21:32

बच्चे के मुख् से निकली किलकारी हूँ..
कभी प्रेम की कृति, तो कभी प्रलयकारी हूँ..
सम्मान अभाव के विरोध में विध्वंसकारी हूं..
हाँ वो जिसे तुम कहते हो अबला, मैं वहीं सृष्टि रचयिता नारी हूँ...

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4 MAY 2023 AT 22:55

एक कविता जो मित्र भी है और इत्र भी है..
ख्यालों को महाकाती और जो मेरा चरित्र भी है!

ना लिखूं तो कुछ अधूरा सा लगता है...
जिंदगी की तस्वीर बनाने में,
शब्दों का रंग पूरा सा लगता है!

एक कविता आधार भी है और आभार भी है..
रिश्तो को देती स्वरूप और उम्मीदों को देती औजार भी है!

तलवार की धार की तरह तेज
और मरहम की तरह प्यार भी है...

संगीत और कविता रूह है जिस्म के
जिसको करता हृदय व्यवहार भी है....

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14 FEB 2023 AT 19:38

मैं अबला नादान नहीं हूँ, दबी हुई पहचान नहीं हूँ
मैं स्वाभिमान से जीती हूँ , रखती अंदर खुद्दारी हूँ
हूँ समाज की नींव , मैं आज की नारी हूँ...

पुरुष प्रधान इस देश में, हमने करतब दिखलाया है
पुरुषों से आगे आई, हर काम करके दिखलाया है
कमजोर ना मुझ को समझो, मैं सब पर ही भारी हूँ
हूँ समाज की नींव, मैं आज की नारी हूँ ..

मैं सीमा से हिमालय तक और खेल मैदानों तक हूँ
मैं माता, बहन और पुत्री, मैं लेखक और कवयित्री हूँ
अपनी भुजबल से जीती हूं, मैं बिजनेस लेडी, व्यापारी हूँ
हूँ समाज की नीव, मैं आधुनिक नारी हूं!!

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