Sakshi Prakash   (साक्षी प्रकाश ‘प्रज्ञा’)
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Joined 17 February 2019


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11 DEC 2024 AT 1:12

आ ख्यालों में बुला लूं तुझे,
आ ख़्वाबों में कहीं बसा लूं तुझे।
कुछ अनकही सी दास्तां दिल की,
यूं हीं कभी सुना दूं तुझे।
आ दिल में कहीं छुपा लूं तुझे,
आ खुद में कहीं समा दूं तुझे।
नगमों की तरह कहीं मैं,
इस तरह से लिख दूं तुझे।
जैसे गीत की तरह कभी,
यूं हीं गुनगुना दूं तुझे।
आ अपनी दुनिया में मैं,
शामिल आज कर दूं तुझे।
आ ख्यालों में बुला लूं तुझे,
आ ख़्वाबों में कहीं बसा लूं तुझे।
आ फिर से एक बार जी लूं तुझे,
आ जिंदगी मैं बना लूं तुझे।

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22 OCT 2024 AT 17:36

इंतजार के पन्नों पर,
तुम्हें इस तरह शामिल कर लिया।
कि इज़हार के लम्हों को भी,
तेरे नाम कर दिया।

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5 OCT 2024 AT 22:13

लब ख़ामोश रहते हैं,
आंखें बह लेती हैं।
दिल के सारे राज़,
ये कह देती हैं।
न जाने कैसे मन की बात,
यह पढ़ लेती हैं।
कुछ कहानियां तो ये,
यूं हीं गढ़ लेती हैं।
दिल में उतर कर मोहब्बत,
जाने कब परवान चढ़ लेती हैं।
हर हद से गुज़र कर,
हर कदम बढ़ लेती है।

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18 SEP 2024 AT 23:45

तू मेरा पूरा बन पाए,
ये जरूरी तो नहीं।
तेरा थोड़ा शामिल होना भी,
बहुत है मुझमें।
तू शामिल न कर मुझको तुझमें,
नहीं है कोई झिझक मुझमें।
कुछ अधूरा जो हो तुझमें,
कुछ अधूरा सा मुझमें।
मिल कर पूरा हो जाएगा,
दो ख्यालों के मिलन से,
ख़्वाब पूरा सा हो जाएगा।

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5 SEP 2024 AT 23:42

ये मुमकिन है कि तुम मेरे बन जाओ,
ये मुमकिन है मैं तेरी कहलाऊं।
मगर नामुमकिन है इस जहां में,
कि हम एक दूजे के कहला पाएं।

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21 AUG 2024 AT 22:28

वो चांद शरमा कर कहीं,
छिप गया बादलों में।
शायद तुम्हारा यूं सामने आना,
लिखा था नसीब में।

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15 AUG 2024 AT 23:05

जो निकलेगी आवाज़ दिल से,
हर दिल तक जाएगी।
हर कली,हर फूल को भी,
तेरा आदेश सुनाएगी।
ऐ भारत मां तुझे है वचन,
रहेगी जान जब तक ये,
तेरा मान बढ़ाएगी।
खुद को मिटा कर भी ये,
तेरी शान बढ़ाएगी।

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10 AUG 2024 AT 22:25

हालातों पर निर्भर हो गया है,
कुछ यूं मेरा किरदार,
जिसने जैसा भी आजमाया,
मुझे वैसा हीं पाया है....

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23 JUL 2024 AT 21:59

वक्त से कुछ इस क़दर,
दोस्ती हो रही है,
कि वक्त के हर फैसले को,
मंजूरी मिल रही है।
मन के बाहर का शोर,
मन के भीतर समा रहा है।
मन कभी शांत,
कभी विचलित सा हो रहा है।
कुछ हालातों में जैसे,
जिन्दगी ढल रही है,
वक्त से कुछ इस क़दर,
दोस्ती हो रही है।

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14 JUL 2024 AT 15:23

तुमसे कुछ मांगने की,
नहीं है मेरी ख़्वाहिश।
अपना हक जताने की,
नहीं है कोई साज़िश।
हां,पर दिल की इतनी,
जरूर है फ़रमाइश।
जो लबों से बयां न हो सके जज़्बात,
उन्हें तुम आंखों से पढ़ लो।
मैं कुछ अधूरा सा लिखूं,
और तुम पूरा समझ लो।

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