हर बार जब तू मिलने आता है, मिलकर फिर तुरंत लौट जाता है,
तुझे जाता देखकर जाने कितनी उम्मीदें दम तोड़ती है
....क्या तू वो जानता है?!
क्या पता है तुझे मैं फिर से कितनी अकेली हो जाती हूं,
हमारे साथ होने के सपने दिन में कई बार सजाती हूं,
जब तेरे पास होते है सब, मैं बस तन्हाई से टकराती हूं,
न हो तुझे फुर्सत जान भी हर लम्हा इंतजार में बिताती हूं।
ये दूरियां दूर कर रहीं है हमें, चल अब तो तू भी मानता हैं,
कब तक अकेली कोशिश करूं, दिल मेरा भी थक जाता हैं,
क्यूं ना थोड़ा तू भी जोर लगाता है?
मेरा हारता हुआ मन अब भी तेरे साथ की आस लगाता हैं,
या चल तू सिखा दे मुझें कैसे तू मेरे बिना भी खुश रह पाता हैं?!
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