Sakshi Maurya   (Sakshi Maurya "शून्य")
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Joined 9 July 2020


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Joined 9 July 2020
5 APR AT 21:23

जल्दबाज़ी की हमने
तुम्हें चुनने में
तुम्हें सुनने में
तुम्हें समझने में
तुम्हें परखने में
तुम्हें जानने में
तुम्हें अपना मानने में
तुम्हें मनाने में
तुम्हें सताने में
ये कहकर
कितने ही मन ख़ुद को कोसते हैं
वक्त फिसल जाता है हाथों से
तब ये कितना सोचते हैं
आंसू ढलकते हैं अरमानों पर
तब ख़ुद ही ये अपना गम पोछते हैं
फिर ज़िंदगी से मुख्तलिफ
इक नया सफ़र ये खोजते हैं

Sakshi Maurya "शून्य"



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27 MAR AT 21:17

कांटों के तने से
फूल चुराया था

यादों के सफ़र से
इक नूर सजाया था

बिखर गया
जो संभल कर भी

ऐसे फूलों से
इक शूल उगाया था

फूलों ने गुनाह को भी
आसानी से भूल बताया था

क्या गलती थी कांटों की
जिन पर लोगों ने इल्जाम लगाया था

Sakshi Maurya "शून्य"

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8 MAR AT 19:22

चुप रह कर भी
संवाद
तुम्हारे मेरे मध्य हो गया

जो तुम न कह सके
अपने अधरों से

वो तुम्हारी
आंखों ने कह दिया

Sakshi Maurya "शून्य"

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1 JAN AT 9:55


क्या पता कल मैं बिखर जाऊं
बीच समंदर में कश्ती से उतर जाऊं
बादलों में ख़ुद को नज़र जाऊं
मोतियों के माफिक भंवर जाऊं
कुहासे की तरह कहर जाऊं
दिनों से शाम तक पहर जाऊं
ढलते हुए सूरज संग सहर जाऊं
इन बहते हुए पलों संग गुजर जाऊं
तो क्यों न मैं जी लूं ये पल अपनों संग
शायद मैं जीने से तर जाऊं
क्या पता कल मैं मर जाऊं

Sakshi Maurya "शून्य"

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21 DEC 2023 AT 10:25

बिखरने का एहसास तब हुआ
जब बिखर गए

टूटने लगी थी जो किशती
उससे सब उतर गए

गम की चादर से
ढक लिए हैं ख़ुद को

खुशियों के जो पल थे
जानें किधर गए

Sakshi Maurya "शून्य "






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12 DEC 2023 AT 8:03

रात की तकदीर में
हर अफसाना बो दिए

कुछ जो मुकम्मल सा था
वो भी खो दिए


अपनी बर्बादी की तारीख पर
देखो
आज़ फिर हम रो दिए

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6 DEC 2023 AT 7:52

जानें क्यूं अब
मैं लिख नहीं पाती
लफ़्ज़ों को पन्नों में
बुन नहीं पाती
पहरों को कानों से
सुन नहीं पाती
ख्यालों के मोती भी
गढ़ नहीं पाती
आंखों से अब
मैं कुछ पढ़ नहीं पाती
जानें किस दोराहे पे
अब ज़िंदगी खड़ी है
जहां खामोशी को भी
मैं सह नहीं पाती

Sakshi Maurya "शून्य "


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23 NOV 2023 AT 21:51

सही कहते हैं आप

ज़िंदगी महज़
इक खिलौना है
जिसके सिरहाने
मौत का बिछौना है
सब कुछ पा के
एक दिन सब खोना है
ख्वाबों के समंदर में
हर दिन सोना है
सबको अपना पाप
यहीं पे धोना है
मैं ज़िंदा हूं
मेरा तो बस यही इक रोना है

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3 NOV 2023 AT 17:36

सबब गमों का बताना
अब मुमकिन नहीं

जलते हुए ज़ख्मों को दिखाना
अब मुमकिन नहीं

बहुत रो लिए हालातों पर
पलकों से आंसू गिराना
अब मुमकिन नहीं

छीना है जिसने हमसे हमारी ज़िंदगी को
उसके कदमों में यूं झुक जाना
अब मुमकिन नहीं

Sakshi Maurya "शून्य"




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24 OCT 2023 AT 7:39

कुछ दुःख कहे नहीं जाते
कुछ दुःख सहे नहीं जाते
बस पिए जाते हैं
आंखों से
जिए जाते हैं सांसों से
और
ये दुःख
कभी कम नहीं होते
कभी नम नहीं होते
आंखों से बहते नहीं ये
कि हल्के फुल्के
ये गम नहीं होते

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