Sakshi Maurya   (Sakshi Maurya "शून्य")
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Joined 9 July 2020


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5 JUL AT 12:29

स्वाभिमान की वेदी पर
प्रेम भारी क्यों हो जाता है ?

प्रेम की अधिकता में
आत्मसम्मान क्यों पीछे रह जाता है?

ये प्रश्न मेरा उन सभी से है

जो प्रेम से युक्त हैं
या यूं कहें
प्रेम में ही मुक्त हैं

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1 JUL AT 18:13

खोज रही हूँ
वो मकां

जहां सुबह महकती रहे
और सांझ अलसाई

दिन ढलता रहे
और रात ले अंगड़ाई

जिसमें तुम रहो
और तुम्हारी तन्हाई

मैं सोई रहूं तुममें
और जागे मुझमें तेरी परछाईं

Sakshi Maurya "शून्य"

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18 JUN AT 14:07

आकिंचन तड़पता रहा
मन
प्रेम वसुधा लिए

अंधकार में जलाता रहा ये
तन
जाने कितने ही दिए

फ़िर भी जीता रहा
अंतर्मन
अनगिनत पीड़ाएं सिए

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16 JUN AT 21:40

हमारे दरमियां
क्या है जो
तुमसे नजरें मिलते ही
मेरी नाराज़गी पानी हो जाती है

बेरंग होती चुनर,
इक तुम्हारे छू भर लेने से
धानी हो जाती है

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16 JUN AT 13:28

मेरा उदास होना
मेरी उदासी को पसन्द नहीं
मेरी उदासी को भी पसन्द है
मेरे भावों की हल्की खिलखिलाहट
थोड़ी सी उन्मुक्त विचारों की आहट
पर तुमने मुझे और मेरी उदासी को
नाराज़ किया है
इतना नाराज़
कि शायद तुम्हारी आँखें
जो मुझे तकती है भरे पूरे एहसासों संग
इन आंखों को
अपनी ओर क़दम बढ़ाता देखकर भी
मेरी उदासी अपना मुंह फेर लेगी

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15 MAY AT 21:49

एक पहेली है ये मन में
जो कभी सुलझ ही नहीं पाई

चेतन से अवचेतन मन की ओर
न जाने कितनी ही दौड़ लगाई

पर ये जो गुत्थी है
कभी सुलझ ही नहीं पाई

नेत्रों के कौरों से लेकर
मस्तक के छोरों तक, नंगे पांव ही चल कर आई

पर ये जो गुत्थी है
कभी सुलझ ही नहीं पाई

Sakshi Maurya "शून्य"

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14 MAY AT 8:55

यूं प्यार करते हो तुम
मेरी नाराज़गी को हंस के तार करते हो तुम

क्यों सोचती हूं मैं इतना
यही सवाल बार बार करते हो तुम

अहद ए वफ़ा होती है क्या
इसका ज़िक्र अपने इश्क़ में हर बार करते हो तुम

जब थक जाती हूं मैं ख़ुद से
मेरी थकन को सवार करते हो तुम

बोझिल होती हूं मैं जब भी
अपनी ठंडक भरी मुहब्बत का इज़हार करते हो तुम

आँखें जब होती हैं चुप मेरी
अपनी बोलती आंखों से एहसास ए इकरार करते हो तुम

यूं प्यार करते हो तुम
मेरी नाराज़गी को हंस के तार करते हो तुम

Sakshi Maurya "शून्य"


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28 MAR AT 20:31

न सुख है न दुख है
कैसा सपाट सा ये मुख है

न फाग है न राग है
कैसा विचलित सा अनुराग है

न रोग है न वियोग है
कैसा अंकिंचित सा संयोग है

न रास है न प्यास है
कैसा अकस्मात सा अभिलाष है

न मरण है न जीवन है
कैसा बीच का ये योजन है

Sakshi Maurya "शून्य"

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27 MAR AT 13:45

कुछ मंजिलें
कभी नहीं मिलती

जैसे
नहीं मिलती कभी
चांदनी चकोर से

नहीं मिलती जमीं
आसमां के छोर से

नहीं मिलते साहिल
किनारे की ओर से

नहीं मिलते कभी
आंसू ,नैनों की कोर से

Sakshi Maurya "शून्य"

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27 MAR AT 13:32

आख़िरी ख़्वाब
देखा था
मैंने
कल ख़्वाब में

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