जिंदगी क्या है -
एक सफ़र जिसमें कोई कसर ना हो,
एक कहानी जिसका कोई अंत ना हो,
एक पहेली जो हम सुलझाते रहें,
या एक सहेली जिसके संग हमेशा जाते रहें ।
ज़िन्दगी क्या है -
बचपन में जल्दी बड़े होना चाहें,
बड़े होकर हमेशा बचपन याद आए,
फिर अपने बच्चों के साथ जब वापस बचपन आए,
तो इस बार कभी ना बड़े होना चाहें ।
ज़िन्दगी क्या है -
सर्दियों में गरमी की धूप को तरसती है,
गरमियों में उसी सूरज से डरती है,
बारिशों में सड़कों पे भीगना चाहे,
और फिर उन्ही सड़कों पे ट्रैफिक से घबराए ।
हम चलते रहे; ज़िंदगी कटती रही,
सालों निकलते गए;ज़िंदगी उलझती रही,
लोग आते गए ; कारवाँ बड़ता गया,
सब सिखाते गए ; मैं सीखता गया ,
इस ज़िंदगी की दौड़ में रिश्ते जुड़ते गए,
कुछ पाता रहा कुछ खोता गया ।
दिन महीने साल गुज़रते गए ,
बहुत अच्छे गुज़रे ; कुछ बुरे,
बहुत देके गए ; कुछ लेके,
मैं सपने देखता गया ; मंज़िल दिखती गयी,
हौंसले बड़ते रहे ; मुश्किलें घटती रहीं,
मैं तो बस चलता रहा ज़िंदगी कटती गयी ।
और हर बार अपने से एक ही सवाल पूछता गया -
ज़िंदगी क्या है ?
एक अफ़साना या एक फँसाना ?
एक जंग या गहरी सुरंग ?
प्यार या टकरार ?
जीत या हार ?
लेकिन फिर भी सवाल एक ही रहा -
ज़िंदगी क्या है ?
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