मैंने पूछा : ऐ साख से गिरते हुए पत्तों,
ज़रा जानूं तेरी खता क्या है?
क्यों तेरी हस्ती यूँ सरेआम बेज़ार किया जा रहा?
मुस्कुरा के बोले सारे पत्ते मुझसे :
बस पेड़ का मन भर गया तो
सूखे होने की इल्ज़ाम लगा दिया।
मैने भी भारी मन से कहा:
मत सोच ज्यादा....ये दुनिया है ही ऐसी,
इसे प्रकृति का नियम बोल
तेरी ही हँसी उड़ाकर,
अपनी इसी फितरत को जायज बता
उसे छिपाने की कोशीश करेगी।
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