हाथों में गुलाब है, उसके भी और मेरे भी,,
कुछ कदम मैं उसकी तरफ़, कुछ वो मेरी तरफ़ चल रही है!
यूँ मेरे और इन ग़मों के करीब आने की ये दास्ताँ भी मुसलसल रही है!!
-
👉 𝑾𝒂𝒏𝒕 𝒕𝒐 𝒆𝒔𝒕𝒂𝒃𝒍𝒊�... read more
ख़ुद से ही रूठते हैं, ख़ुद ही मुँह फ़ुला लिया करते हैं
ख़ुद से ख़ुद को, ख़ुद के काँधे पर सुला लिया करते हैं
अकेले नहीं हैं हम, ग़मों की महफ़िल मुक़द्दर है हमें,,
ग़म दूर भी खड़ी हो, तो हम ख़ुद बुला लिया करते हैं-
ख़ुद से नफ़रत का ये वादा, याद मुझे हर रोज़ रहेगा!!
मुलाक़ात ना हो सकी ज़िन्दगी से, ज़िन्दगी भर अफ़सोस रहेगा!!-
इक सवाल है मन में,
जवाब उसका मिल नहीं रहा है,,
या वो जवाब मैं सुनना नहीं चाहता!!
सुन भी लिया गर, तो क्या ही फ़र्क़,,
ग़म की चादर मैं बुनना नहीं चाहता!!
ख़ैर, इस दिल ने इसी दिल से पूछा है जो सवाल,,
बता ही देता हूँ कि इसने किया है मेरा बुरा हाल!!
सवाल यूँ कि "सबसे ज़्यादा नफ़रत" तू किसे करता है??
जो इतने नाम हैं दिल में, उन्हें? या फिर मुझे करता है??
गर वो ख़ुद मैं ही हूँ, तो ये इतने सारे नाम क्यूँ?
बेवजह ही इस दिल को बहलाने का काम क्यूँ!!
आख़िर क्यूँ है ख़ुद को ख़ुद से इतनी नफ़रत,
क्या ज़िन्दगी में कोई गुनाह किये बैठा हूँ?
या फिर इल्ज़ामों की पनाह लिये बैठा हूँ!!
हाथों में गलतियाँ, दिल में उनका एहसास है!!
शायद से अब, सिर्फ मुझे ही मुझ पर नाज़ है!!
फिर भी नफ़रत ख़ुद से, यूँ ही बरकरार है!!
ये दिल तो अब, उल्फ़तों का तलबगार है!!
खुद ही खुद से नफ़रत की सज़ा क्या है?
वैसे ये बताओ, कि मेरी ख़ता क्या है??
जब भी-जो भी चाहा, खोया हर कदम!!
ऐ ख़ुदा! अब तो दिखा दे थोड़ी-सी रहम!!-
सफर है ये मेरा, इस सफर में इक अजब सा शोर है
क्यूँकि मंज़िल कुछ और थी, मगर रस्ता कुछ और है-
अंधेरों में जन्मा इक तन्हा गुलाब, नसीब में है,,
मुमकिन ही नहीं जो, वही ख़्वाब, नसीब में है!!
रौनक-ए-दिल कभी झलकती थी आँखों में,,
आज बस चेहरे पर इक नकाब, नसीब में है!!
हमारा भी जलवा था कभी, रुतबा था कभी,,
अब तो तन्हा ख़्वाबों का रूआब, नसीब में है!!
ख़ुशियों की तो अब हो गई है उम्र जनाब,,
और ग़मों का देखो ये शबाब, नसीब में है!!
माँग रहा है इन ग़मों का हिसाब ये 'सक्षम',,
और ख़ामोशी से भरा जवाब, नसीब में है!!-
तेरी ख़ातिर रोज़, ख़ुदा से फ़रियाद करता हूँ,,
कुछ इस क़दर तुझे, मैं हर पल याद करता हूँ!!-
ऐ सुकून! अब तुझसे बस एक ही सवाल है मेरा!!
तू मेरी ज़िन्दगी बन जा, बता क्या ख़याल है तेरा!!-
कब-कैसे, क्या से क्या हो गया, पता ना चला!!
ज़िन्दगी दे-कर रूठ गया ख़ुदा, पता ना चला!!
कहीं सुना तो था, कि देखने चाहिए ख़्वाब हमें,,
आख़िर हो गए उनसे भी जुदा, पता ना चला!!
ढुँढते-ढुँढते ख़ुशियाँ, ग़मों से मुलाक़ात हो गई,,
मिलकर उनपे ही हो गए फ़िदा, पता ना चला!!
किसी रोज़ ये होंठ, बिंदास मुस्कुराया करते थे,,
कब बदल गई उनकी भी अदा, पता ना चला!!
था इक चेहरा, खिलखिलाहट थी जिसपे, मगर,,
वो 'सक्षम' भी कह गया अल-विदा, पता ना चला!!-
"सज़ा-ए-ज़िन्दगी"
दिल-नयन-ज़ुबाँ, इन सब में अब बाँट रहा हूँ!!
यादों के खंडहर से, कुछ ख़ुशियाँ छाँट रहा हूँ!!
नहीं हो पाता मैं, उनसे भी ख़ुश आख़िर क्यूँ,,
'बंद करो ये नाटक', अब ख़ुद को डाँट रहा हूँ!!
ग़हरा ही नहीं सागर सिर्फ, ऊँचा भी है मेरा,,
ग़मों की चादर जो, एक पे एक साट रहा हूँ!!
ये ज़िन्दगी तो ख़तम है, इक अरसे से साहेब,,
अब तो बस, "सज़ा-ए-ज़िन्दगी" काट रहा हूँ!!-