Sakhi   (✍️ सखी)
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Joined 1 February 2018


Joined 1 February 2018
31 MAY 2021 AT 11:33

ये बाते नहीं मेरी जज़्बात है
तेरी आहट पे मेरी मुस्कुराहट है ,
अब इस दिल की एक ही है चाहत
करते रहे आप हमसे यूँही मोहब्बत|

हो क़बूल या हो इनकार
हमसे माँग ना इजाज़त कर इज़हार,
ख़्वाबों के शहज़ादे का है इन्तज़ार
करते रहे जो हमसे यूँही प्यार|

आसान ना थीं राहें प्यार की
टूटा ना इरादा कभी आशिको की ,
शहजादा मेरा हार ना माने कभी भी
करते रहे आप हमसे यूँही आशिक़ी

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24 JUL 2020 AT 19:47

मैं आसमान में उड़ना चाहती हूँ,
एक मांझे का साहारा चाहतीं हूँ।

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23 JUL 2020 AT 21:04

जब महफ़िल में हम लोगों से घिरे रहते थे
तब वो हमें किसी कोने से देखा करती थी

जब साथ हमारे कोई ना होता
तब वो हमसे बात विवाद करती

वो हमें बेहद बेपनाह बेइंतहा चाहतीं थी
पर हम अपने जीवन में उसे ना चाहते थे

हम तो इस दुनिया से सुख की कामना करते
बदले में दुनिया हमे दुख प्रदान करती है

जब भी कभी किसी दोस्त दर्द दे जाते
तब वो हमारे दर्द पर दोस्ती की मरहम लगाती

अब वो हमारी सखी है कहलाती
जिसे दुनिया तन्हाई है कहती।

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22 JUL 2020 AT 18:06

वो कहता था...
"मुझसे है उसका वजूद
जिसमें मेरी बसती है जान

"रीमझीम बरखा बरसना चाहे
मीठी धारा बन धरा बहना चाहे
हर मुश्किलों से लड़ संवरना चाहे"

"खुद से दूर उसे ना जाने दूँ मैं
पर मुस्कान है जिसकी धड़कन मेरी
उसे नाराज़ करु मैं कैसे?"

ऐसा बादल है वो मेरा और मैं उनकी बरखा

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21 JUL 2020 AT 17:54

चाहूँ मै.... हो कोई
जो मेरे दिल को आपना घर मानने वाला
जो मेरे ख्वाबों को अपनी मंजिल समझने वाला
जो अपनी जान मुझ पे इत्तर सा छीडकने वाला

दिल दिवाना कोई राँझा मेरा भी होगा
जो मुझे.... आपना हीर मानने वाला

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20 JUL 2020 AT 18:31

इस दिल की खता बयां की है हमने कागज पे
इनके सिवा आखिर है कौन हमारा इस ज़माने में

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19 JUL 2020 AT 14:35

मिले हो आप हमें जब से
है ना काबू दिल पे तब से
अब बहती जा रही हूॅं मैं
बहती नदी में नाव के जैसे

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18 JUL 2020 AT 15:19

तेरे मासूम मुस्कान पे
मेरा दिल फिसल गया,
ना जाने कब और कैसे
मेरा दिल लड़खड़ा गया,
अब यूॅं उलझा हूॅं तेरे ख्वाबों में
जैसे उलझे है धागे धागोमें।

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27 APR 2020 AT 15:50

Tangling...
My hair with my fingers
I wonder
Was it just a coincidence...
Or is it the destiny that
Tangled, our lives together.

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22 APR 2020 AT 22:01

किताब, जो बड़े से संदूक में बंद हैं,
संदूक, जिस पर बड़ा सा ताला लगा है,
ताला, जिसकी चाबी बड़ी अनोखी है,
चाबी, जो बड़़े लंबे वक्त से मेरे पास है;

तुम उस किताब की तरह हो,
जो पास भी और ख़ास भी ,
पर अल्फ़ाज़, किसी लुप्त भाषा के।

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