sakera tunvar  
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Joined 15 February 2020


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Joined 15 February 2020
13 MAR AT 19:44

कोई अगर बिमार है, कोई अगर बेहतर है
कोई तकलीफ़ में है या फिर कोई हमेशा के लिए छोड़ के जा रहा है
जिसके नसीब में जितनी तकलीफ लिखी है उसे इस दुनिया में भुगतनी ही है क्योंकि यही ऊपरवाले का चक्र है।
इसलिए बड़ी हवेलियो में जो होने वाला होता है अक्सर उसका निशान कच्चे मकान बन जाते हैं और कच्चे मकानों में बसने वाले नाजूक दिल के लोगों पर इल्ज़ाम लगाया जाता है कि तुने एसा किया इसलिए एसा हो गया।



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2 JAN AT 19:02

खामोश सा यह साल बुलंदियों में आवाज मेरी,
लफ़्ज़ों का यह खेल मेरा लेकिन तकदीर बीते साल ने लिखी,
कुछ कहानियां लिखी मेंने, कुछ इस साल ने सफलता मेरे कदमों में लिखी,
लेकिन जाते जाते इस साल ने फटकार भी दी एसी,
की हर कोई तुमसा नहीं जो साथ खड़ा मिले तुझे युही,
लेकिन फिर भी हल्ले से भरा रहेगा यह साल मेरा और महसूस करना गूंजती वो आवाज़ मेरी।




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24 DEC 2024 AT 10:23

एक कदम की दुरी पर यार खड़ा मेरा,
भागकर गले से लग जाने को दिल मेरा,
लेकिन इन कमबख्त पैरों ने बंदिशें लगाई,
दिमाग ने पुरानी यादें याद दिलाई,
की बैठते थे जो साथ तेरे ढाल बनकर,
वो याद कर पल जब महफ़िल जमी थी तुझे घेरकर,
इस बीच दिल ने कुछ सफाई देनी चाही
तभी मुस्कुराहट ने उसकी बात बीच में काटकर कहा,
वो पल भी याद होंगे तुझे जो मुस्कुराते थे साथ तेरे,
उसी मुस्कुराहट को रुसवा किया भरी महफिल में
न जाने कौन से नाम देकर।

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17 OCT 2024 AT 12:52

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17 OCT 2024 AT 12:48

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13 SEP 2024 AT 20:44


थामकर अपना स्वाभिमान..
संभालकर वह अपना घूंघट वह डरी सहमी सी रहती थी,
नींद उसकी स्याही सी पल भर में खत्म हो जाती थी,
घर की चाबीया दरवाजे की कूंडीया,
बच्चों की चादरें हो या हर रोज की अनसुलझी वो पहेलियां,
सब झुकाकर सिर वह यु सुलझाया करती थी,
चार दिवारो में गूंजती किलकारी उसकी,
चार दिवारो में ही थम जाती थी,
एक दौर आया एसा की..,
तोड़ कर‌ समाज की बेड़ियां,
बेटीयां बनने चली आसमां की चिड़िया,
देख कल्पना को यह कल्पना की
के आसमान में होती शायद हमारी गुड़िया,
फिर न‌ए सिरे से शुरू हुई कहानी उसकी
खत्म हुई भ्रूण हत्या,
सबके सिर का ताज बनती गई बेटीयां,
सम्मान में चूर होकर छूती रही वह ऊंचाइयां,
लेकिन लंबे अरसे के बाद बनी एक और निर्भया,
खामोश हो गई बेजान शरीर देखकर यह दुनिया,
फिर एक बार यही कहानी दोहराई,
चार दिवारी मैं शुरू हुई कहानी,
चार दिवारी मैं ही खत्म हो गई।







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19 JUL 2024 AT 16:21

if any writer is around you so be careful because they know what you think?what are you doing next?? and what is your next move?
and reason behind of this that they are over thinker and their guesses would be 80% true..

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21 MAR 2024 AT 21:55

बहुत दिनों से बंद पड़ी मेरी उस डायरी ने कलम से पूछा...,

आजकल मुझसे,तुमसे और उसकी वह अनकही सी शायरी से रिश्ता कुछ फिका सा पड गया है...,
कलम ने उसकी बात सुनकर तुरंत ही कहा...,
की उसके आगे लफ्ज़ो का कारवां चलता है...
वह देख ले एक नजर उसको तो कुछ शायरी सा अक्श बनता है।

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5 FEB 2024 AT 19:40

Some one say,

हर बात हंसी मजाक पर क्यों खत्म होती है इसकी।

But after listening this my heart say,

खुदा ने बनाया है न‌ जाने क्यू इस शख्शियत को जो गैरों को भी अपना मानती है,
जहां अपने भी मतलब से मुस्कुराते हैं,वहां उसके छोटे से मजाक से वह न जाने कितने चेहरों की मुस्कुराहट बनती है।

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5 NOV 2023 AT 19:05

मुकम्मल-ए-ख्वाब के इंतजार में बैठे एक शक्श ने आखीरकार थककर खुदा से पूछ ही लिया कि,
मंजिल के इंतजार में बैठे हैं हम मरहले में यु गुमनाम,
की कब वह हर मनाजील पार करके आएगी हमारे पास?
खुदा ने उसकी बात सुनकर दिलकश मुस्कान बिखेरकर कहा,
आज नहीं तो कल बेशक मुकम्मल है ख्वाब उनके जिन्होंने मंजिल ए ख्वाब में ठोकरें है खाई,
और गुमनाम तो वह है जो मरहले से बाहर निकले ही नहीं।

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