कल उस हादसे में क्या हुआ कुछ याद नहीं,
आखिर मंज़र में शायद मुझे एक बोतल खून चढ़ा रहे थे,
आज अजीब सी हलचल है इस बदन में,
कतरा कतरा बेचैन है और कोलाहल मचा है
ये नया खून बहुत अलग है,
मसलन, गली के मोड़ पे मंदिर है और मस्जिद भी,
एक कतरा मंदिर को देखता है तो दूसरा मस्जिद की ओर झांकता है,
जब माथे पे तिलक लगाऊं तो एक कतरा सर पे टोपी को पुकारता है,
दोनों हाथ सजदे में नहीं उठ रहे मेरे,
जुबां पे कभी अल्लाह कभी भगवान् बैठा है,
कुरआन ओर गीता भी बट रहे हैं मुझमे कहीं,
एक अजीब कश-म-कश, एक अजीब जंग सी छिड़ गयी है खून में,
और बगावती हो रहा है हर कतरा मेरे मन का,
इसमें तालमेल बैठाने में फिर सादिया लगेंगी,
न जाने कब कौन सा कतरा बाघी हो जाए ...
न जाने कब ...एक सरहद और बन जाए
-मैहर
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