सदियों से जल रहा हुं
लेकिन राख नही होता!
रावण जो हुं !!
मैं तुम सब में बस्ता हुं,
क्यो ? तुम से खुद का ही दिल साफ़ नहीं होता?
मैं रावण हुं ....मेरी भी कोई मर्यादा है,
और फिर हर जलाने वाला भी तो राम नहीं होता!!
सब कुछ पा के सब कुछ हारा हुं
समझो !!
कौन सा पाप है जिसका नाश नहीं होता ?
सुना!!
पाप का कोई चेहरा नहीं होता, किसी का पुण्य किसी का पाप हो जाता है , जो जीते वो बलवान और भगवान हो जाता है!
लेकिन रावण सब में है और तुम से अपना भीतर साफ नहीं होता
तुम अपने अन्दर कोई छोटी सी आग जलाओ..
बाहर के दीपक से आत्मा में प्रकाश नही होता !
आज फिर जला लो तुम मेरा पुतला
और उत्सव जारी रहने दो ....
यों करो !!
इस प्रकाश को अपने अन्दर बहने हो
और तब तक बहने दो
जब तक सब धुल न जाए तुम्हारे भी भीतर से,
जिसे तुम छल, कपट,ईर्षा,द्वेष, लोभ,मोह और पाप कहते हो!
-saira Qureshi
दशहरा मुबारक !!
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