पूछ रही थी सवाल गुड़िया
मां शैतान क्या होता है ?
निकलता काली रातों में
वो हैवान क्या होता है?
सुन गुड़िया बोली मां
रहता नही अब अंधेरे में
इंसानों में वो अब बसता है
डरता है शैतान भी उससे
आज के दौर में जो रहता है।
समझ नही आई जो बात वो
आज समझ में आई ,
समझ गई गुड़िया जो
शाम ने एक जो दिखलाई।
होता नही हैवान कोई न
जंगल में सोता है ,
भीतर ही भीतर कोई
घात लगाए होता है।
रहना संभल हर क्षण
शक्ति तुझ पे वारी है।
कमज़ोर नहीं आगे बढ़
नवयुग की तू नारी है ।
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बदलते हैं रोज़ मेयार हर शख्स के इस तरह
ढलते हैं मौसम बहार ओ खार के जिस तरह-
कांटो से कभी कांटे काटे नहीं जाते
बिखरे हुए फूल कभी बांटे नही जाते
शिकायते खत्म कर जिंदगी से ’नाज़’
गुनाह अपने किसी पे लादे नही जाते-
तौल गया मेरे किरदार को दो लफ्ज़ों में ’नाज़’
कहकर ज़माना बहुत खराब है आज .....-
करके हिजरत अब ये दिल कहां जाए
दौर हर जानिब एक नया नज़र आए
ठहरती ही नही रोशनी इन आंखों में
ठंडक तेरे दर पे महज़ ही नज़र आए
जलते हैं अंगारे पैरों तले निरे ज़र्रों में
सजदों में सुकून या रब तेरे ही पाए
कैसी ये हिद्दत है कैसी ये तानाई है
लज़्जत गुनाहों में बसी आशनाई है
भटक न जाना शान ए फिज़ा में नाज़
दुनिया महज़ आजमाइश ए दानाई है-
मांगो जो एक चादर वो कम्बल चार देती है,
मां अपनी सारी खुशियां मुझ पे वार देती है।
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سمیٹ لینا شاد ستاروں کو آنکھوں کے جہاں میں
ملتی نہیں تعبیریں خوابوں كو زر و زمینوں میں ناز-