बिखरा अगर मैं किधर जाऊंगा
वक्त है अभी अभी संभल जाऊंगा ।
शाम न हो तो अच्छा है अभी
साथ किरणों के मैं निखर जाऊंगा ।
साथ रहा ता उम्र कांटों से मेरा
एक दिन गुलाबो में चुना जाऊंगा ।
खुशबू फैलेगी फिज़ाओं मे मेरी
हवा में रोज़ इक मैं बिखर जाऊंगा ।
अकेला चला था अकेला ही हूं
कहां किसी का मैं सिफ़र जाऊंगा ।
सिमटते रहे तिनके आंधियों में
साथ आसमां के मैं शिखर जाऊंगा ।
कलम कह गई लफ्ज़ हालातों के
ज़बानी मैं कहां कहा जाऊंगा ।
सांसे लिखती रही किताबे कई
बाद जिंदगानी मैं पढ़ा जाऊंगा ।
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