राधे राधे कहते कहते, समय जाल से छूट गए,
राधे राधे जपते जपते, विकृत आईने टूट गए ।
राधे राधे लिखते लिखते, व्यर्थ बंधन मिट गए,
राधे राधे गाते गाते, प्रेमनगर हम पहुंच गए ।।
गर पूछे कोई राधा रानी की परिभाषा, तो कहना :
नाम से जिनकी सुंदरता चर्चित है,
भक्ति से जिनकी यह ब्रह्माण्ड वर्णित है,
सर्वप्रिय राधा तो वह अवर्णनीय शक्ति है,
जिनके प्रेम में श्री कृष्ण भी मोहित हैं ।।-
श्रृंगार रूपी विष लगे, आकर्षित इस मन को,
लोभ और कामना लगें, मनमोहक इस तन को ।
प्रेम नहीं, केवल द्वेष उपार्जित होगा,
जब अहंकार से भरोगे अपने इस चेतन को ।
अमृत-रस मिलता केवल देवी के द्वार में,
कर्मों का विनाश होता केवल देवी के द्वार में,
निस्वार्थ प्रेम मिलता केवल देवी के द्वार में,
और अंधकार से मुक्ति मिलती केवल देवी के द्वार में ।-
सुनो,
कुछ कहना है तुमसे, लेकिन कभी कह नहीं पाऊंगा,
अगर इजाज़त हो, तो ताउम्र तुम्हें निहारता रहूंगा।
इसे मोहब्बत केहलो या आकर्षण,
तुम्हारी मंजूरी हो, तो मैं हमारी तक़दीर स्वयं लिखना चाहूंगा ।-
इशारों ने इशारों में इशारा किया,
मुस्कराहट ने दूर से ही मुस्करा दिया ।
आफ़ताब की लालिमा से चांद भी शरमा गया,
चांद की चांदनी ने वक्त को भी रोक लिया ।
बारिश के बूंदों ने अश्रुओं को ढक लिया,
सूरज के किरणों ने उन्ही बूंदों को सोख लिया ।।
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शादी के जोड़े में क्या खूब जच रही हैं ।
पापा की मलिका आज सुहागन बनने जा रही हैं ।।
सजने संवरने से नफरत था जिसको,
आज सज धज के इस घर से विदा हो रही हैं ।।
मेहन्दी पर भले ही नाम सुहाग का हो,
दिल मैं अपने पिता की तसवीर लिए घूमती हैं ।
मांग में सिन्दूर भले ही शौहर का हो,
आँसू अपने पिता के कंधो पर ही बहाती हैं ।।
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बारिश का वो मौसम था,
बड़ा सुहाना मंज़र था ।
दूर किसी न्यायपीठ पे एक अनजान लड़की बैठी थी,
शायद बारिश के बुंदो से अपने आंसू छुपा रही थी ।
उसकी मायूसी की वजह जानने, मैं उसके नजदीक गया,
उसका खून से लथपथ हात देख, मैं जरा घबरा सा गया।
मेरे को देखते ही, वो घबराने लगी,
और अपने आंसू पोछने लगी ।
उसके पास एक तस्वीर थी,
उस तस्वीर को मेरे से छुपाने लगी।।.......
To be continued-
कभी सोचा न था,
कि एक दिन हम भी कठपुतले बन जाएंगे।
समय के साथ, हम भी समय का शिकार बन जाएंगे ।।
कठपुतली अरमानों की,
कठपुतली जज्बातों की,
कठपुतली अधूरे ख्वाबों की,
कठपुतली सलामत यादों की ।
कभी सोचा न था,
कि एक दिन हम भी कठपुतले बन जाएंगे।
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अनकही आँखॊ पर अनगिनत सपने लिए चल रहे हो,
ज़बान पर ताले लगाए; केवल पन्ने भरते जा रहे हो ।
कब तक अपनी खयाली दुनिया में खोए रहोगे,
कभी हकीक़त का भी सामना करके देखो।
कब तक दुनिया का बोझ लेते फिरोगे,
कभी खुद की ज़िम्मेदारी भी लेकर देखो ।।-
तीरगी में था खडा
एक ही जिद्द पे था अड़ा,
मौत आई थी नज़र,
घायल कर गई इस कदर........
फिर हुई जो रोशनी
वहा नहीं था कोई भी।
था मगर एक आईना,
और आइने में अक्स भी ।।
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बडे प्यार से मुझे नहलाया जा रहा था,
चार कंधो पे उठाकर कहीं ले जाया जा रहा था ।
चीख चीख कर लोग रो रहे थे, लेकिन
न जाने क्यों, मैं फिर भी सो रहा था ।।
सबकी जुबान पर " राम " का नाम था,
मेरे शरीर को दफनाया जा रहा था,
न जाने क्यों, मैं फिर भी सो रहा था ।।
माँ को आखिरी बार गले लगाने की ख्वाहिश थी,
परंतु, मौत मुझे अपने साथ ले जाने के मकसद से ही आयी थी ।।
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