प्रिय नानी,
आपका हमारे साथ रहते हुए ये एक माह कैसे बीत गया, कुछ पता ही नहीं चला।कितना कुछ सोचा था मैंने आपके लिए..और बताया भी तो था उस दिन आपको..लेक़िन आप उसका इंतज़ार किए बिना ही चली गईं..हमें छोड़कर.!..और दे गईं हमें एक ख़ालीपन..एक वो ख़ालीपन..वो रिक्तिता..जिसको आपके सिवा कोई और नहीं भर सकता है हमारी ज़िंदगी में..
गर्मी की छुट्टियाँ हों या न हों..कोई त्यौहार हो या न हो..आप हमेशा हमें बुलाती रहती थीं और हम जाते भी थे..सबसे ये कहते हुए कि "नानी के घर" जा रहे हैं..और लौटकर आते भी तो सबसे यही कहते कि "नानी के घर" गए थे।अब तो एक आदत सी पड़ गई है क्योंकि जब से बोलना शुरू किया है तब से लेकर आज तक हम यही कहते रहे कि "नानी के घर".. मगर अब हम क्या कहेंगे नानी..?
आज एकदम सवेरे-सवेरे आपका अचानक से यूँ जाना मेरी समझ से परे है नानी..अब इतनी भी क्या जल्दी थी..कम से कम कुछ एक दो लफ़्ज़ तो हमसे कहने की मोहलत माँग लेतीं आप आज सवेरे उस ऊपर वाले से..या फ़िर क्या वो इतना क्रूर और निर्दयी है कि उसने आपकी सुनी ही नहीं..?
नानी, ये आपका हम सबसे प्रेम था या फ़िर शायद हमारे पिछले जन्म का कोई पुण्य..जिसकी वजह से आपके अंतिम दिनों में आपकी सेवा करने का अवसर हमें मिला।
ईश्वर जन्म-मरण के बंधनों से मुक्त कर आपको अपने श्रीचरणों में स्थान प्रदान करें..
हम सबके ह्रदय में आप हमेशा रहेंगी..नानी..
--आपकी बिटिया
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