Sahitya Pathak "jyoti "   (© साहित्या पाठक 'ज्योति')
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I'm_also_at _"Pratilipi"_....✍
Joined 19 April 2019


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30 OCT 2021 AT 11:38

कभी ग़ौर किया है इस बात पर
कि कई बार प्रेम में रहते हुए
हम भूल जाते हैं
एक दूसरे से प्रेम करना ही..!

कभी कभी रिश्ते या प्रेम में
एक वक़्त ऐसा भी आ जाता है
जब हमें एक दूसरे को गले लगाने
प्यार से चूमने
एक दूसरे की आंखों में प्रेम से देखने
एक दूसरे की हथेली की नमी या शुष्की को
महसूस करने
और ख़ामोशी से
एक दूसरे को निहारने..इत्यादि का भी
हमारे पास वक़्त ही नहीं रहता।
या तो भूल जाते हैं हम..या फ़िर
एक वक़्त के बाद
ज़रूरी ही नहीं समझते हम
प्रेम में ये सब करना-जताना।
मतलब प्रेम में रहते हुए हम प्रेम ही नहीं करते!
और फ़िर भी कहते फिरते हैं कि
हम प्रेम में हैं..एक दूसरे के साथ रिश्ते में हैं!
अज़ीब है न!

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17 OCT 2021 AT 9:36

कुछ चीज़ें लौट आती हैं
और मैं चाहती हूँ
कि उन 'कुछ चीज़ों' में
शामिल रहो 'तुम'...🥀

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28 MAY 2021 AT 12:44

आज की सुबह
ये मौसम..
मद्धिम बारिश..
बालकनी में रखे कुछ गमले..
बारिश से भीगी मिट्टी
और उससे आ रही भीनी भीनी ख़ुशबू...
हवा में झूलते
और इसी बहाने
एक दूसरे को चूमते
और अपने दिल मिलाते
घुइयाँ के ये शरारती पौधे..
बौंड़ी में आज ही खिले
कुछ गुलाबी कुछ सफ़ेद
कुछ चितकबरे ये फूल..
खिड़की के उस पार जाली को
कसकर पकड़े खड़ा
मनी प्लांट का ये पौधा..
साथ में इसकी सहचरी की तरह
इससे लिपटी
शरमाई सकुचाई सी ये गिलोय..
और खिड़की के इस पार
एक पिन में बंधे
इकट्ठा किए हुए
कुछ सादे पन्ने
पेंसिल,किताब-कुर्सी और
मुट्ठी भर हल्के भुने हुए चने लेकर बैठी मैं...
बस यही देख रही हूँ कि―
ये सब देखना और होना कितना ख़ूबसूरत है..!

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22 MAY 2021 AT 8:39

मैं आज भी पढ़ती हूँ उसे
लिखने के लिए..❤

क्योंकि वो मुझे कभी लिख नहीं सका
और मैं आज तक
उसे कभी पढ़ ही नहीं सकी..

वो नहीं दे सका कभी लफ़्ज़ मेरी ख़ामोशी को
और मैं इकट्ठे कर नहीं पढ़ सकी कभी
उसके चेहरे और ह्रदय पर अंकित
भिन्न-भिन्न ढ़ेर सारे अक्षर
एक साथ..
जिससे एक आधे या फ़िर
बन सकते कुछ एक शब्द
या फ़िर कुछ वाक्य
जिससे आसान हो जाता मेरे लिए
शायद उसको समझ पाना
और सम्भव हो पाता
हमारा मिलन..
लेक़िन हम अनपढ़ ही रहे
एक दूसरे को पढ़-लिख व
समझ सकने में
आख़िरी मुलाक़ात के
आख़िरी वक़्त तक...

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9 MAY 2021 AT 8:38

माँऐं चाहे आज के समय की हों
या फ़िर पुराने ख़यालों की
एक बात तो तय है
और अटल सत्य है
कि माँऐं कभी नहीं बदलेंगी।

बदलती हैं
तो सिर्फ़ परिस्थितियाँ
समय और प्राथमिकताएँ
माँ का प्यार
माँ के भीतर हमेशा
एक सा ही रहता है।

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2 MAY 2021 AT 11:50

काश !
कि कोई होता
जो बिल्कुल
हमारी तरह होता..❤

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1 MAY 2021 AT 11:56

क्या आपने कभी किसी लेख़क को ज़ोर-ज़ोर से रोते,चीखते-चिल्लाते देखा है..?
शायद नहीं..
या फ़िर देखा भी होगा तो विरले ही..।

क्योंकि एक लेख़क की आवाज़ उसकी लेखनी..उसके शब्द ही होते हैं, जिनके ज़रिए वो रोता है..बहुत रोता है..चिल्लाता है..जिसे सुन व समझ सकना..हर किसी के लिए सम्भव नहीं।

उसका लिखा एक एक अच्छर चीखता है..दर्द से.. पीड़ा में.. जो उसने अपनी आँखों से देखा.. और अपने ह्रदय में.. अपनी ख़ुद की देह में उसे बिल्कुल उसी तरह महसूस किया।
उसकी पलकें चुपचाप भीगती रहती हैं.. और उसकी क़लम चुपचाप लिखती रहती है.. बिना कोई शोर किए।

एक लेख़क अपनी हँसी.. अपने आँसू..अपनी मोहब्बत..अपना वियोग..अपने एहसास..अपनी आवाज़..अपनी चीखें..अपना दर्द..अपना सबकुछ.. बड़ी ही ख़ामोशी और चालाकी से छुपा देता है..अपने लिखे हर इक इक शब्द में.. अच्छर में।

अब ये आप पाठकों पर निर्भर करता है कि आप उसे कितना पढ़ पाते हैं..कितना समझ पाते हैं..और सबसे बड़ी बात यह कि उसे कितना महसूस कर पाते हैं आप..अपने ख़ुद के भीतर..।

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29 APR 2021 AT 21:26

प्रिय नानी,

आपका हमारे साथ रहते हुए ये एक माह कैसे बीत गया, कुछ पता ही नहीं चला।कितना कुछ सोचा था मैंने आपके लिए..और बताया भी तो था उस दिन आपको..लेक़िन आप उसका इंतज़ार किए बिना ही चली गईं..हमें छोड़कर.!..और दे गईं हमें एक ख़ालीपन..एक वो ख़ालीपन..वो रिक्तिता..जिसको आपके सिवा कोई और नहीं भर सकता है हमारी ज़िंदगी में..

गर्मी की छुट्टियाँ हों या न हों..कोई त्यौहार हो या न हो..आप हमेशा हमें बुलाती रहती थीं और हम जाते भी थे..सबसे ये कहते हुए कि "नानी के घर" जा रहे हैं..और लौटकर आते भी तो सबसे यही कहते कि "नानी के घर" गए थे।अब तो एक आदत सी पड़ गई है क्योंकि जब से बोलना शुरू किया है तब से लेकर आज तक हम यही कहते रहे कि "नानी के घर".. मगर अब हम क्या कहेंगे नानी..?

आज एकदम सवेरे-सवेरे आपका अचानक से यूँ जाना मेरी समझ से परे है नानी..अब इतनी भी क्या जल्दी थी..कम से कम कुछ एक दो लफ़्ज़ तो हमसे कहने की मोहलत माँग लेतीं आप आज सवेरे उस ऊपर वाले से..या फ़िर क्या वो इतना क्रूर और निर्दयी है कि उसने आपकी सुनी ही नहीं..?

नानी, ये आपका हम सबसे प्रेम था या फ़िर शायद हमारे पिछले जन्म का कोई पुण्य..जिसकी वजह से आपके अंतिम दिनों में आपकी सेवा करने का अवसर हमें मिला।

ईश्वर जन्म-मरण के बंधनों से मुक्त कर आपको अपने श्रीचरणों में स्थान प्रदान करें..
हम सबके ह्रदय में आप हमेशा रहेंगी..नानी..

--आपकी बिटिया

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29 APR 2021 AT 16:45

किसी के आने से पहले
हम उसकी कल्पनाओं में
खोए रहते हैं
और जाने के पश्चात्
उसकी यादों में..


किसी का आना
जितना सुखद होता है
उसका जाना
उतना ही दुःखद।

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21 APR 2021 AT 8:55

लड़कियों!
प्रेम में
गुलाब देते
हाथ की तरफ़
कभी मत बढ़ाना
अपने हाथ
तुम जाना उस ओर
और थामना वो हाथ
जो पूरी तरह से ख़ाली हों
जिनके पास
तुम्हें देने के लिए
प्रेम के सिवा
और कुछ भी न हो..

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