कहाँ कितनी ज़मीनों पर तू दावा मार सकता है
अरे ज़ालिम बता कितनों का हिस्सा मार सकता है
ज़माने भर की नेअमत भी मयस्सर हो अगर तुझको
मेरा रब चाह ले पल में तो भूका मार सकता है
वह इक नादान लड़का जिसकी रोटी तूने छीनी है
बड़े होकर तेरे घर पर वह डाका मार सकता है
किसी पर आँख बंद कर के भरोसा मत कभी करना
बदल जायेंगे गर वह लोग धोका मार सकता है
ज़माने भर में ज़हरीली हवायें हैं तअस्सुब की
तुझे घर से तेरा बाहर निकलना मार सकता है
तेरी माँ की दुआओं का तेरे सर पर जो साया है
तुझे लगता है क्या तुझको कोरोना मार सकता है-
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करो तारीफ आँखों की तो नरगिस या कँवल कह दो
बड़ी फुर्सत में बैठे हो चलो मुझ पर गज़ल कह दो
गुलाबों से भी नाज़ुक लब से कोई बात जो कह दूँ
महकते फूलों की बारिश का जैसे कोई पल कह दो
बड़ी फुर्सत में बैठे हो चलो......
मेरी घुँघराली ज़ुल्फें तो घटाओं से घनेरी हैं तो
घटा को न घटा लिक्खो मेरी ज़ुल्फों का बल कह दो
बड़ी फुर्सत में बैठे हो चलो......
मेरे महराबी माथे को मेरी बादामी रंगत को
मेरे महताबी ख़ालो ख़द को तुम हुस्ने गज़ल कह दो
बड़ी फुर्सत में बैठे हो चलो......
मेरे रुख्सार, ज़ेरे लब, सुराही दार गर्दन पर
जो मेरे तिल हैं उस पे शेअर कोई बरमहल कह दो
बड़ी फुर्सत में बैठे हो चलो......
मुहब्बत और गरमजोशी से जो ये हाथ थामा है
रहेंगे यूँ ही ऐसे ही अबद से ता अज़ल कह दो
बड़ी फुर्सत में बैठे हो चलो......
मैं चलती हूँ तो लगता है कि शाखे गुल हिले कोई
मदहोशी सी छाती है नहीं पाते सम्भल कह दो
बड़ी फुर्सत में बैठे हो चलो......
मैं क़ुदरत का करिश्मा हूँ अनोखी हूँ निराली हूँ
अकेले हूँ मैं अपनी सी नहीं कोई बदल कह दो
बड़ी फुर्सत में बैठे हो चलो......-
#mazak_tak
हसीं है खूबसूरत है वो सुंदर है वो प्यारी है
उसे सच में ये लगता है यही उसकी बिमारी है
लगा हो प्यार का चश्मा तो लड़के थोड़े अंधे है
गधी भी हूर दिखती है तो क्या गलती हमारी है
तुझे लगता है बिन तेरे मगर हम जी नहीं सकते
सिलंडर ऑक्सीजन की है या तू अबला नारी है
ज़रा सा छेड़ देने पर ज़बाँ उसकी यूँ चलती है
समझ में ही नहीं आता वो कैंची है या आरी है-
खयालों में यूँ आ आ के मेरी नींदें उड़ाओ न
चलो अब सो भी जाने दो मेरे ख़्वाबों में आओ न
बहुत नाराज़ हूँ तुमसे ये पहला झूट है मेरा
मेरी पहली मुहब्बत हो मुझे फिर भी मनाओ न
अभी वह सामने हैं तो समा लेने दो आँखों मे
मेरी धड़कन की धकधक तुम ज़रा धूमे मचाओ न
मुझे मालूम है मुमकिन नहीं कोशिश तो करते हैं
मैं साहिर जैसे लिखता हूँ लता के जैसे गाओ न-
ए आसमाँ बता न तेरा चाँद क्या हुआ
जो सिर्फ आज सितारों से जगमगाता है
कहा ये उसने अँधेरे में छोड़ कर मुझको
कहीं वो आज ज़मीं पर दिये जलाता है
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हमारी आँखों में ख्वाब एक नया पलना ज़रूरी है
दिवाली आई है भाई दिया जलना ज़रूरी है
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न मैं यूसफ न तेरा इश्क़ ज़ुलेखा जैसा
तू मुझे माँगे दुआओं में तो क्योंकर माँगे-
मेरे लफ़्ज़ों मेरे जुमलों मेरी बातों में रहती है
वो खुश्बू की तरह ऐसे मेरी ग़ज़लों में रहती है
हंस कर अलविदा उसको कभी का कह दिया मैने
न जाने ये नमी सी क्यूँ मेरी आँखों में रहती है
जिसे पागल समझकर मैं नज़रअंदाज़ करता था
वही अब ज़िंदगी बनकर मेरी साँसों में रहती है
चमकती चाँद जैसे है मेरी पल्कों पे रातों को
वो खिलकर चाँदनी जैसे मेरे ख्वाबों में रहती है
कभी वो दर्द बन कर के टपक जाती है आँखो से
कभी लब पर दुआ बन कर मेरे सजदों में रहती है-
मेरे हर झूठ के पीछे की सच्चाई समझते हैं
वो मेरे दोस्त हैं मुझ को सगा भाई समझते हैं
मेरे हँसते हुए चेहरे से धोका तक नही खाते
मेरे दिल में छुपे हर दर्द की गहराई समझते हैं
लिपट जाते हैं मिलते हैं कभी जो बाद मुद्दत के
गिले शिक्वों की हम इसको ही भरपाई समझते हैं
बरस्ती बारिशों में भी वह आँसू देख लेते हैं
भरी महफ़िल में हैं ये दोस्त तन्हाई समझते हैं-
जिसकी आँखों में मेरा अक्स है रौशन रौशन
कैसे मेंहदी में मेरा नाम छुपाती होगी-