करो तारीफ आँखों की तो नरगिस या कँवल कह दो
बड़ी फुर्सत में बैठे हो चलो मुझ पर गज़ल कह दो
गुलाबों से भी नाज़ुक लब से कोई बात जो कह दूँ
महकते फूलों की बारिश का जैसे कोई पल कह दो
बड़ी फुर्सत में बैठे हो चलो......
मेरी घुँघराली ज़ुल्फें तो घटाओं से घनेरी हैं तो
घटा को न घटा लिक्खो मेरी ज़ुल्फों का बल कह दो
बड़ी फुर्सत में बैठे हो चलो......
मेरे महराबी माथे को मेरी बादामी रंगत को
मेरे महताबी ख़ालो ख़द को तुम हुस्ने गज़ल कह दो
बड़ी फुर्सत में बैठे हो चलो......
मेरे रुख्सार, ज़ेरे लब, सुराही दार गर्दन पर
जो मेरे तिल हैं उस पे शेअर कोई बरमहल कह दो
बड़ी फुर्सत में बैठे हो चलो......
मुहब्बत और गरमजोशी से जो ये हाथ थामा है
रहेंगे यूँ ही ऐसे ही अबद से ता अज़ल कह दो
बड़ी फुर्सत में बैठे हो चलो......
मैं चलती हूँ तो लगता है कि शाखे गुल हिले कोई
मदहोशी सी छाती है नहीं पाते सम्भल कह दो
बड़ी फुर्सत में बैठे हो चलो......
मैं क़ुदरत का करिश्मा हूँ अनोखी हूँ निराली हूँ
अकेले हूँ मैं अपनी सी नहीं कोई बदल कह दो
बड़ी फुर्सत में बैठे हो चलो......
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