आँख भर आई।।।
महसूस किया जब दर्द उसका का तो
आँख भर आई, गैरों से क्या मलाल रखूं रुसवा जब अपने से हुए तो।।
आँख भर आई, शब_ए_तंहाइयों मे रुसवाइयों ने घेरा तो।।
आँख भर आई, बे हयाई मे बिनाइ खोई अपने ने तो
आँख भर आई, खौफ कहा ज़िंदान के अंधेरों का जब अपना ही आशियाना मेहफ़ूज़ नही तो।।
आँख भर आई, रौशन होना था जिसके हाथों से चिराग_ए_जिंदगी अब वो हाथ ही बाईस_ए_अंधेरा बना तो।।
आँख भर आई, उम्मीद ए वफा थी जिससे बेवफाई का मरकाज़ बना तो।।
आँख भर आई, चमन_ए_जिंदगी मे फूलों ने ही कांटे चुभाये तो।।
आँख भर आई, जिस नाम से रौशन होना था नाम मेरा उसने ही शान घटाई तो।।
आँख भर आई, महसूस किया जब दर्द उसका का तो।।
आँख भर आई।। ज़ुल्म_ओ_सितम के दर्द को उसने मुस्कुरा के युं छुपाया तो।।
आँख भर आई।।।
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