एक छत के नीचे हम दोनों का फासला
दिखाता करीब था मगर दूर बहुत था-
जिंदगी नाराज़ न होना, मुलाकात होने तक
बस ये रात रोक लो, मुकम्मल बात होने तक-
मेरे आईने में अब अक्स तुम्हारा ही दिखता है
हर मुलाकात पे तुम साथ हो ये जरूरी तो नहीं
मैं अक्सर तुमसे बातें करता हूं मेरी हमनफस
हां हर बार तुम रूबरू हो ये जरूरी तो नहीं-
दिन ढलने को है आओ कुछ चिराग जला लें
झूठे ही सही मगर कुछ तो सूरज उगा लें
कोशिश छोटी है पर तसव्वुर तो बड़ा है
भेदना आसमान है आओ पत्थर तो उछालें
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नींद टूट जाती है और खुआब बिखर जाते हैं
कुछ यूँ भी आप और हम बिछड़ जाते हैं
चाहते तो यही हैं कि चिराग रोशन ही रहें
जाने क्यों हवाओ से रिश्ते बिगड़ जाते हैं-
मेरे माज़ी के सफहे भी अब तुमको थाह नहीं देते
वो लिखा सब मिट गया जिस पे मेरे अश्क गिरे थे-
फिसल कर गिरा, सम्भल कर चलने वाला
साथ छोड़ गया जब साथ में चलने वाला
अब कुछ बचा नहीं बस जिस्म जिंदा है
रूह तक ले गया वो रूह में बसने वाला-
कागज़ की कश्ती भी पार निकल गई
मौजें अब उदासीन हैं ये हुआ क्या है-
मंजिल और रास्ते तो मुसाफिर का ही फैसला है
अपना फर्ज निभाते हैं सभी रास्ता दिखाने वाले
कुछ अलग बात है मेरे चाहने वालों की "साहिल"
अक्सर तैरना भी सिखाते है मुझको डुबोने वाले-
स्वयं के साथ अक्सर ये तकरार करते हैं
वो श्क्स मेरा है ही नहीं जिसे प्यार करते हैं
मंजिले इंतजार नहीं करतीं राहगीरों का
ये तो रास्ते हैं जो हमारा इंतजार करते हैं-