"कुछ लोग थककर घर चले गए,
बस एक मैं था, जो घर से ही थक चुका था।
दीवारें अब सिर को दबाती थीं,
खिड़कियों से बाहर की हवा भी भारी लगती थी।
जहाँ जाना था, वो रास्ते भी अजनबी लगते थे,
और मैं बस खुद से पूछता रहा –
‘मैं कहाँ जाता?’"
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ना मैं शायर हूँ,
मेरे पास लफ्ज़ थोड़े हैं ।
बस दिल के अल्फ़ाज़ शब्दों में जोड़े है... read more
कहानी मेरी एक बार ही लिख खुदा
तू रोज़ पन्ना क्यों पलट देता है ।
मै पिछले दर्द मे होता हूं
तू नया दर्द लिख देता है ।।-
भीतर मेरे शमशान था,
मौत मेरी इतनी बार हुई
मेरे अंदर की आग कभी बुझि ही नही,
एक दिन के लिए भी ये शमशान सुना हो जाये अगर
मैं चल्दू राख समेटे अपनी डगर ।।-
जिस हालात में मैं ज़िंदा रहा
वो मेरे हालात देखकर डर गया ।
उसने मेरा दर्द अभी साहा ही नही था
वो तोह मेरी बात सुनकर मर गया ।।-
कुछ ऐसे हादसे हुए ज़िंदगी मे के,
ज़िंदगी नहीं रही पर ज़िंदा रह गए ||-
क्या करूँ उन तारों का जो सब मेरे खिलाफ़ हैं ?
तारों की तो फौज है पर,
चाँद का साथ देने वाली चाँदनी किसी और के पास है ।-
मैं जी भी लूँ एक पल के लिए
पर जीने की कोई वजह नहीं ।
दर्द सहने हैं मुझको इतने
कि रूह भी कहने लगी
के मुझमें बची अब जगह नहीं ॥-
हाथों की उलझी लकीरों को देख ना जाने क्यों डर सा लगता है ।
हादसे से गुजर रहा हूंँ या हादसा होना अभी बाकी है,
इस कशमकश में बिखरा पड़ा हूं मैं ।-