sahil narula   (Sahil Narula)
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Joined 5 July 2021


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Joined 5 July 2021
6 JAN AT 10:42

सच पे अक्सर दुनिया लड़ती है,
और झूठ तसल्ली दे जाता है ।।

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1 OCT 2023 AT 12:29

क्या करूँ उन तारों का जो सब मेरे खिलाफ़ हैं ?
तारों की तो फौज है पर,
चाँद का साथ देने वाली चाँदनी किसी और के पास है ।

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30 SEP 2023 AT 13:46

मैं जी भी लूँ एक पल के लिए
पर जीने की कोई वजह नहीं ।
दर्द सहने हैं मुझको इतने
कि रूह भी कहने लगी
के मुझमें बची अब जगह नहीं ॥

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7 SEP 2023 AT 14:22

हाथों की उलझी लकीरों को देख ना जाने क्यों डर सा लगता है ।
हादसे से गुजर रहा हूंँ या हादसा होना अभी बाकी है,
इस कशमकश में बिखरा पड़ा हूं मैं ।

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3 AUG 2023 AT 8:49

कैसे गिर जाता वो पेड़ उम्र बता कर,
ज़िम्मेदारियों की धूप में रहता था वो
उम्र छुपा कर ।
छाँव अपनों को देता था,
पेट अपनों का भरता था,
कुछ फल गिराकर ॥

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14 JUL 2023 AT 15:38

आँसुओं की नमी इतनी थी काग़ज पर कि जलता कैसे वो?
दर्द सीने का लिखा था उस काग़ज पर मरता कैसे वो?

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20 MAR 2023 AT 9:34

ऐ मौत तू जिम्मेदारियों से पहले आना ।
जिम्मेदारियों के बाद तो न तेरे पास आ सकूँगा न तुझसे दूर जा सकूँगा ।

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29 JAN 2023 AT 17:48

गमों का कोई किनारा नहीं होता ।
हर शक्स का कोई सहारा हो यह जरूरी नहीं होता ।
कुछ तकलीफें खुद से सहनी पढ़ती हैं ।
खुद का सहारा कभी बेसहारा नहीं होता ।

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29 SEP 2022 AT 0:11

वो बचपन अच्छा था जब जेब में पेंसिल और मिटाने को रबड़ थी,
अब कहाँ समझ आती है जिंदगी ।
जब निकलता हूँ कमाने कुछ उम्मीद भर जेब में,
तो मिटाने को सिर्फ़ भूख नज़र आती है ।

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7 SEP 2022 AT 23:28

बस यूँ उदास है मन मेरा,
तकलीफों के साए में रहता है अब तन मेरा ।
ना मिला वो जुनून मुझको,
जो दे सके सुकून मुझको ।
वक़्त का परिंदा
ज़िम्मेदारियों का रोग दे गया,
ख्वाईशें अधूरी रही
और सपनों को भी चूर कर गया ।।

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