Sahiba   (Sahiba)
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An introvert soul with extrovert mind🌠

insta/ neem_zubaan
Joined 5 May 2017


An introvert soul with extrovert mind🌠

insta/ neem_zubaan
Joined 5 May 2017
6 FEB AT 11:21

एक शज्र की छांव के लिए
हम भटक रहे हैं सेहरा -सेहरा
माथे पर शिकन , पांव में छाले लिए
इस दर , उस दर माथा टेक रहे हैं
मुर्दा ख्वाबों का बोझ लिए
रातें सिसकियों से सी रहे हैं
नज़र जाए दिल की फांस पर तो
दिखे एक हरा भरा शजर
कैसा फला -फूला है
जिसकी छांव को दिल -ए- मुज़्तर है।
_साहिबा

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23 MAY 2023 AT 0:35

क्या लिखूं
तुम, मैं या हम लिख दूं
लहरों का शोर या समंदर की गहराई का सन्नाटा लिख दूं
वो खूबसूरत शाम जब साथ थी चांदनी
या रात का गहरा अंधेरा लिख दूं
सर्दी की गुनगुनी धूप या बारिश की पहली बूंद लिख दूं
गुज़रते वक्त का क़िस्सा या
बचपन का कोई खिलौना लिख दूं
क्या लिखूं
तुम कहो तो
"दिल" लिख दूं ।।
_साहिबा

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3 AUG 2022 AT 13:54

किरदारों में नुमां यूं वफ़ा की अदाक़ारिया हैं
चाशनी में इश्क़ की रूपोश फरेब की मक्कारियां हैं।।

کرداروں میں نماں یوں وفا کی اداقاریاں ہیں
چاشنی میں عشق کی روپوش فریب کی مکاریاں ہیں
صاحبہ۔

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25 JUN 2022 AT 23:16

گر دنیا بازار ہے
چلو ہم بھی ویا پار کرتے ہیں
میں اونے پونے داموں میں عشق خریردوگی
تم مفت میں فریب بیچنا۔۔

गर दुनिया बाज़ार है
चलो हम भी व्यापार करते हैं
मैं औने पौने दामों में
इश्क़ खरीदूगी
तुम मुफ़्त में फरेब बेचना ।।

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21 MAY 2022 AT 20:49

किस दुनिया की हस्ती हूं?किस दुनिया में हंसती हूं?
रात सी इस दुनिया में ,किस दिन को तरसती हूं?



کس دنیا کی ہستی ہوں؟ کس دنیا میں ھستی ہوں؟
رات سی اس دنیا میں، کس دن کو ترستی ہوں؟

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1 APR 2022 AT 22:54

मौसम उदासियों का है
हर एक टूटे पत्ते के साथ
एक मुस्कान झरती है
कदमों तले कुचलती हैं
सरे राह मुस्कुराहटें
और उदासी झूलती है झूला
हर शाख पर तन्हा।।
_साहिबा

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14 JAN 2022 AT 23:18

कांटों पर रखा ईश्वर के बग़ीचे का
सबसे सुंदर फूल ...जीवन है।

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13 JAN 2022 AT 1:24

कितना कुछ जो हम लिख देना चाहते हैं
और बहुत कुछ जो लिखे के बीच की खाई पाटे
बहुत कुछ सुनते हैं हम फिर भी
सुनने लायक कान तक पहुंच छन्न से गायब
ताकते हैं आसमान पर भूल जाते हैं ठीक उसी वक़्त
ताकता है वो भी हमें खालीपन से
सवालों के ढेर पर बैठ
ज़िंदगी का सिरा पीछे छूट जाता है
क्यूं,कैसे,कब,कहां,उफ्फ,दुख में
इन्द्रधनुष अपने सब रंग छोड़ कहा गया नहीं पता
कौन भेदे कविता का मौन
जब धैर्य ना पाए एक भी शब्द।।
साहिबा

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31 DEC 2021 AT 22:00


जिस तरह जीवन के रंगमंच पर
ईश्वर के हाथ है सबकी डोर
उसी तरह रंगमंच का परदा
समय की डोर से बंधा हुआ है
हमारे अभिनय का आरम्भ और अंत
इसी परदे पर निर्भर है।।

साहिबा

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30 SEP 2021 AT 22:57

वो जो टुकड़ा कांच का हथेली पर सजाया था
उजलत - ए -इश्क में कहीं चूर - चूर हो गया।

- साहिबा

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