दिन का आग़ाज़ कुछ इस तरह करना
देश के लिए जीना देश के लिए मरना-
जब कांटा और गुलाब संग हैं
फिर आप क्यों दुखों से तंग है
यहां हर हाल में लड़ना होगा
यह ज़िंदगी नहीं बल्कि जंग है!-
मायूस न हो दिल मेरे बहारें फ़िर भी आएंगी
जब समय अनुकूल होगा मरूस्थल में भी फसलें लहलहाएंगी!-
मेरे ख़िलाफ़ बात करता है मेरा अपना होकर!
आख़िर मुझे ही डस मेरी आस्तीन में सो कर!-
रिश्तों को वही निभाते हैं जिन्हें आदमी की भूख है
वरना तो लोगों को लगता है कि प्रेम बस एक छलावा है, एक चूक है!-
यादों का इक जंगल है और मैं नितांत अकेले खोजता फिरता हूं उस रिश्ते को जो कहीं अकेले बैठा चुपचाप सिसकियां ले रहा है!
मैं उसे मिलकर अचंभित कर देना चाहता हूं....-
देखो तो अवसर ही अवसर है इस जहान में
आखिर क्यों रहते हो हर वक्त यूं ही परेशान से?
मंज़िल बांहे फैलाए तुम्हारे इंतज़ार में खड़ी हैं
और तुम इस सोच में हो कि कौन सी शुभ घड़ी है!-
दिल जैसा दुश्मन नहीं जो ख़ुद से ज़्यादा दूसरे के लिए धड़कता है
अपनी चिंता छोड़ कर औरों के लिए तड़पता है
हर पल हर घड़ी बस ग़ैर के बारे में सोचता है
और वो नहीं मिले तो ख़ुद के ही घावों को खरोंचता है!
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