यादों का इक जंगल है और मैं नितांत अकेले खोजता फिरता हूं उस रिश्ते को जो कहीं अकेले बैठा चुपचाप सिसकियां ले रहा है! मैं उसे मिलकर अचंभित कर देना चाहता हूं....
देखो तो अवसर ही अवसर है इस जहान में आखिर क्यों रहते हो हर वक्त यूं ही परेशान से? मंज़िल बांहे फैलाए तुम्हारे इंतज़ार में खड़ी हैं और तुम इस सोच में हो कि कौन सी शुभ घड़ी है!
दिल जैसा दुश्मन नहीं जो ख़ुद से ज़्यादा दूसरे के लिए धड़कता है अपनी चिंता छोड़ कर औरों के लिए तड़पता है हर पल हर घड़ी बस ग़ैर के बारे में सोचता है और वो नहीं मिले तो ख़ुद के ही घावों को खरोंचता है!