हम तो गुरेज़ करते हैं बदज़बानी से
प्यास कभी बुझती नहीं खारे पानी से।
हलाल की कमाई में ही बरकत होती है
कौन सुकून में रहता है यहाँ बेईमानी से।
सदाक़ात ही तो जीतती है आख़िर में
सुन रखे हैं किस्से कई दादी-नानी से।
किसी शेर का वजूद तो हम दोनों से है
यही मिसरा-ए-उला ने कहा सानी से।
लगता है अंदर का तिफ़्ल सो गया है
बड़ी कोफ्त होने लगी है नादानी से।
इश्क नें कब यारों हदों की परवाह की है
ये तो फ़कीर को भी हो जाता है रानी से।
क्यों अकेले ये गुज़रना नहीं चाहती
यही शिकायत है मेरी इस जवानी से।
यहाँ तो सबको एक पहचान बनानी है
जैसे दरिया जाना जाता है रवानी से।
'साहिल' क्यों लफ़्ज़ों से खेलते हो यहाँ
जहाँ किसी की वाबस्तगी नहीं मानी से।
साहिल।।
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तुमसे इश्क का सिलसिला पुराना है
ये तो नया दौर और नया ज़माना है।
इज़ाज़त हो तो तुम्हारे दिल में आ जाऊं
वहाँ मुझको छोटा सा एक घर बनाना है।
तेरी याद में अक्सर जो गुनगुनाता हूँ
पूछते हैं सब की कौन सा तराना है।
गज़ल कहने का हुनर कहाँ जानता हूँ मैं
तेरी बातें करने का फकत एक बहाना है।
नाम वो तभी तो ज़बान पर नहीं आता
मुझे ख़ुद से किया एक वादा निभाना है।
दिल टूटने पर जो आँसू नहीं छलके मेरे
तभी सबकी नज़रों में 'साहिल' सायना है।
साहिल।।
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जो घर में सामान पुराना रखा है
उसमें एक गुज़रा ज़माना रखा है।
नये दौर के पलंग पर भी यहाँ तो
पुरानी यादों का सिरहाना रखा है।
मेरे दिल दिल की बात है उसमें
इन लबों पर जो तराना रखा है।
अश्क़ बहुत कीमती हैं उन आँखों के
जिन में ज़ज़्बातों का खज़ाना रखा है।
सच कहने से आज रिश्ते टूट जाते हैं
तभी तो हर ज़बान पर बहाना रखा है।
वो भूखा तो शुक्रगुज़ार है ख़ुदा का
जिसके सामने लज़ीज़ खाना रखा है।
गज़लो की दराज़ में बंद 'साहिल'
चेहरा एक ज़ाना-पहचाना रखा है।
साहिल।।
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जो घाव लगा था सही हो रहा है
उतना दर्द अब नहीं हो रहा है।
सुना था वक़्त भर देता है हर ज़ख्म
मेरे साथ भी शायद यही हो रहा है।
खुशियों को भी अब रास आने लगा हूँ
जो कभी सोचा नहीं वही हो रहा है।
महंगाई की गर्मी जब से बढ़ने लगी है
हर माह तब से बस मई हो रहा है।
उसमें पड़ने लगी हैं कुछ खटाई की बूंदें
बचपन वाला दूध अब दही हो रहा है।
नफे नुकसान का हिसाब रखने लगा हूँ
'साहिल' अब तो एक बही हो रहा है।
साहिल।।
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जैसे जैसे ज़िन्दगी में खसारा होता रहा
आँखों का पानी और खारा होता रहा।
इश्क में कुछ यूँ गिरफ़्तार हुआ दिल
उनका हर ग़म भी हमारा होता रहा।
कुछ बच्चे देखे जो निवालों को तरसते
पत्थरदिल शख्स भी पारा-पारा होता रहा।
लफ़्ज़ों ने तो लफ़्ज़ों से कोई बात नहीं की
आँखों ही आँखों में बस इशारा होता रहा।
वो शख्स जो अपने परिवार का सहरा था
ढलती उम्र के साथ ही बेसहारा होता रहा।
किसी का चाँद बनने की हसरत थी जिसको
वो तो अपनों की आँखों का तारा होता रहा।
ख़ूबसूरती बसी थी जिसकी नज़र में
हसीन उसके लिए हर नज़ारा होता रहा।
जिंदगी के सफ़र में उलझ गया इतना
'साहिल' का ख़ुद से किनारा होता रहा।
साहिल।।-
पूछते हैं सब की ये क्या हो रहा है
दर्द ही अब मेरी दवा हो रहा है।
बेखबर की मुस्तकबिल में क्या होगा
एक परिंदा पिंजरे से रिहा हो रहा है।
किसी की यादों में अब भटकने लगा है
धीरे-धीरे दिल ये लापता हो रहा है।
आज के दौर में सबको रोग ये कैसा लगा
ख़ुद का अहम ही ख़ुद से बड़ा हो रहा है।
वो हर दिन अपने ख्वाबों का क़त्ल करता है
एक मुफलिस से ये कैसा गुनाह हो रहा है।
कोई तो खुशी से अपनी ज़िंदगी बिता रहा
तो कोई किसी ग़म में मुब्तला हो रहा है।
लहू का दरिया बनती जा रही है ये दुनिया
जंग से आख़िर किसका भला हो रहा है।
इश्क में चोट खाया मैं अकेला नहीं हूँ
ऐसे और लोगों से भी राब्ता हो रहा है।
'साहिल' को तो अभी गज़लें कहनी हैं कई
हर दिन एक नया ज़ख्म अता हो रहा है।
साहिल।।
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ज़िन्दगी की तलाश में उससे जुदा हो गये
लोग अपनी ही सांसों से ख़फ़ा हो गये।
आग की लपटों में जल गई सैकड़ों उम्मीदें
जाने कितने अरमान बस धुँआ हो गये।
पते नये खोजने की फ़िराक में थे जो लोग
सब पूछते हैं कि वो कहाँ लापता हो गये।
जिनकी आवाज़ से गूँजती थी बज़्में
वही अब एक ख़ामोश सदा हो गये।
तब्बसुम खिला था जिन लबों पर कभी
वो आज बस दर्द के गवाह हो गये।
नसीब की कैसी ये तदबीर है देखो
मकीन नहीं मकान भी तबाह हो गये।
कहर के दरमयान भी जी गये जो
वो सब भी रब की रज़ा हो गये।
यकीन है मुझे की बदलेगा मंज़र
कई सवाल जब बाद-ए-सबा हो गये।
पूछता है 'साहिल' की सज़ा क्या होगी
जिससे भी अज़ीम गुनाह हो गये।
साहिल।।
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जो लम्बा था सफ़र वो मुकम्मल हो गया
कल जो खद्दर था आज मलमल हो गया।
बस स्याह था कल तलक जो किरदार
वही आज आँखों का काजल हो गया।
जाने कितने सर्प आज लिपट गये उससे
वो शख्स जो शजर-ए-संदल हो गया।
कल जिस ज़हन की कसमें खाई जाती थी
वही आज कुछ नज़रों में बेकल हो गया।
कल तक जहाँ एक फुलवारी लगी थी
वहीं आज एक गहरा दलदल हो गया।
जो कुछ सच बयान कर दिये मैंने
सबने कहा की 'साहिल' पागल हो गया।
साहिल।।-
कभी तो मेरा ख़याल भी रखो ना
आंसू देती हो तो रुमाल भी रखो ना।
आँखें जब सितारों की तर्जुमानी करती हैं
स्याह रात की मानिंद खुले बाल भी रखो ना।
शमशीर बाज़ी में तो माहिर हो तुम
हिफाज़त को मगर संग ढाल भी रखो ना।
वो फूल तो तुमने गुलदान में सजा लिया है
उसेके शाख से टूटने का मलाल भी रखो ना।
जो गर शातिर खिलाड़ी हो शतरंज के
तैयार अपनी अगली चाल भी रखो ना।
इम्तिहान लेने की जो आदत है तुम्हें
तो उसमें आसान सवाल भी रखो ना।
जिस लहू में अभी बस इश्क बहता है
देश के लिए उसमें उबाल भी रखो ना।
उरूज पर होकर जो ग़ुमान होता है 'साहिल'
तो ज़हन में कहीं दौर-ए-ज़वाल भी रखो ना।
साहिल।।
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एक मंज़िल ढूंढ ली है सफ़र के लिए
चल रहा निशान-ए-रहगुज़र के लिए।
ज़्यादा नहीं पर उतना तो कमा लेता हूँ
जितना ज़रूरी है गुज़र-बसर के लिए।
सुना है दुनिया की बहुत फ़िक्र है तुम्हें
अख़बार पढ़ता हूँ हर ख़बर के लिए।
इश्क तो आग का दरिया पार करना है
इसमें कोई जगह नहीं है डर के लिए।
इंसान के जाने पर आंसू बहाते हैं सभी
यहाँ कोई नहीं रोता किसी शजर के लिए।
जिस सहारे ने उनको बेसहारा छोड़ दिया
फ़िर भी वालदेन रोते हैं उस पिसर के लिए।
ईंट पत्थर ही इतने अज़ीज़ हो गये आज
खून के रिश्ते तोड़े गये एक घर के लिए।
एक मियाद मुकर्रर होती है हर रिश्ते की
कोई अपना नहीं होता उम्र भर के लिए।
नज़ारे बदलने की ताब होती है जिसमें
'साहिल' मुन्तज़िर है उसी नज़र के लिए।
साहिल।।
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