अल्फ़ाज़ो के दरम्यां हमनें देखे हैं हाल भी
देखे हैं खंजर और खंजर के वार भी
Dr प्रवीक्षा Dubey "सागरिका"-
जानती हूं कि तेरी आम सी ज़िंदगी में बहुत खास हूं मैं
हर दफा तेरा लफ्ज़ों में बताना मुझे अच्छा नहीं लगता
Dr प्रवीक्षा Dubey "सागरिका"-
अल्फ़ाज़ मेरे लोगो के ज़ेहन इस तरह में बस गए
कुछ इश्क़ में कुछ बिछड़े तो कुछ के घर बस गए
मैं तो दरिया हूं बहता रहा और जा मिला समन्दर में
वो सीप हम मोती साहिल पे हमारे घर बस गए
Dr. प्रवीक्षा Dubey "सागरिका
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औरत ने जन्मा और कमबख्त सोया भी औरत के संग
भरती रहीं जो हरपल इसके जीवन में खुशियों के रंग
कुल का दीपक कह जिसे औरत का रक्षक सोचा गया
मां बाप का दुलारा जिसे आंखों का तारा पुकारा गया
वहशी भक्षक बन गया देख औरत का नाजुक बदन
हवस की भूख में बच्चियों के जिस्म को नोचा गया
नाजुक कली को थी भी नहीं अभी जमाने की समझ
मजबूत हाथों से जबरन पकड़कर दामन दबोचा गया
खेल हो गया दोस्तों में बाँटना बेपर्दा कर बहन बेटियाँ
हाय दरिंदगी में होंठो को काटा नाखूनों से खरोंचा गया
नाजों से रखा था खुदा से मांगी दुआओं की आमीन सी
माँ की परी पापा की लाडली को टुकड़ों में सौंपा गया
फिर न लूटे किसी ट्विंकल आसिफा निर्भया का चमन
खौफ हो सोचकर क्या ऐसा कानून बनाने का सोचा गया
वहशी भक्षक बन गया देख, औरत का नाजुक बदन
हवस की भूख में बच्चियों के जिस्म को नोचा गया
Dr. Praviksha Dubey "Sagarika"
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दरक जायें दीवारें मकान की तो काबिल-ए-मरम्मत हैं
टूटे विश्वास की नींव तो इंसा कहाँ जाये ?
Praviksha Dubey "Sagarika"-
झूठे दौर में भी जीकर सच्ची रही हूं मैं
जमाना सच ही कहता है अभी बच्ची हूं मैं
Dr. प्रवीक्षा Dubey "सागरिका"-
अंजुमन में शायरों की कुछ इस तरह जिक्र हुआ मेरा
हमनें भी तस्लीमियत से जबाब में अपने तास्सुरात कह दिये
शायर :- तुम्हारा Attitude बड़ा खतरनाक है सागरिका
कोई बराबर का मिला तो मिट जायेगा
हम :- Attitude ऐसा ही रहेगा, हमसे मिलने वाले की तबियत सुधर जायेगी या बिगड़ जायेगी
शायर :- तुम्हारी अकड़ दुनियां की भीड़ से तुम्हें अलग कर देगी सागरिका
हम :- भीड़ से अलग ही तो रहना है, एक दिन मेरी जिन्दगी जीकर देखो तुम्हारी बोलती बंद हो जायेगी
शायर :- तुमनें तो मुहब्बत को पाक लिखा है फिर तन्हा क्यों हो ?
हम :- उसे हासिल ही करना होता तो आंखों का इशारा ही काफी था,
जज्बातों की भाषा तुम्हें समझ नहीं आयेगी
शायर :- मुझसे दोस्ती करोगी तो खुशियों की बहार आजायेगी
हम :- किताबों से यारी की है, मेरी जिन्दगी संवर जायेगी
शायर :- मिजाज अलग है दिखता है, किरदार अलग है साबित करो
हम :- मेरे जनाजे में आना, भीड़ मेरे बारे में सबकुछ बतायेगी
Dr प्रवीक्षा Dubey "सागरिका"-
सीनें में दफन हैं दर्द की ढेरों कहानियां
मौजूद हैं वक्त के जख्म़ की सारी निशानियां
Dr. प्रवीक्षा Dubey "सागरिका"-
रमज़ान के मुक़द्दस मौके पर
हमनें भी खुदा से अता फ़रमाई
क़बूल हुई हर रज़ा मेरी लेकिन
न मिली ईदी न ईद की बधाई
Dr. प्रवीक्षा Dubey "सागरिका"-
नाव से कहाँ गहराई का अन्दाजा
जानता वही जो पानी में उतरा है
Dr. Praviksha Dubey-