इरादा मनमुताबिक अंजाम होने का।।
तरीका मैं ढूंढ ही लेता हूं नाकाम होने का।।
मंज़िल पर पहुंच कर दिखाना था सबको,
सबब क्यों पूछता हूं सफ़र में थकान होने का।।
दुनियां इकट्ठा कर ली इश्क़ पर मोहर लगवाने,
हर किस्सा होता नहीं सरेआम होने का।।
तबियत से मिला हूं बस्ती के हर शख्स से,
डर ही ख़त्म हो गया बदनाम होने का।।
पहचानो के बाज़ार में सबसे पूछता हूं मैं,
दाम क्या होगा यहां गुमनाम होने का।।
ख़ुद्दारी का इनाम देने में जल्दी कर बैठें,
मुझे मौका ही नहीं मिला बेईमान होने का।।
एक सुझाव देना है गांव के प्रधान को,
दूसरे चौराहे पर स्कूल, पहले पे शमशान होने का।।
अधूरा गिलास बन कर निकला महफ़िल ए ज़िंदगी से,
सपना तो था छलकता जाम होने का।।-
वक्त की बर्बादी है जिंदगी की समझाइश में।।
बस मौत ही बाकी है फेहरिस्त ए ख्वाहिश में।।
कैसे काटते है लोग उम्र साठ सत्तर तक,
हम तो अब ही ऊब गए अट्ठाइस में।।-
उम्मीदों का नमक भरा सा हो।
मैं जैसे कोई ज़ख्म हरा सा हो।।
घंटे, दिन, महीने, साल ऐसे गुजारता हू मैं,
जिंदा मशीन हो कोई या इंसान मरा सा हो।।
चंद किताबें और कुछ यार चाहिए साथ अपने,
उम्र की कोठरी में रोशनदान ज़रा सा हो।।
मज़मे में हर कोई एक सी जिंदगी गुजारता है,
देखो अकेले में मिल कर, शायद हर शख्स डरा सा हो।।
दुनियां देख कर दाद देता हूं उस शख्स की,
सबकी खुशामदी करता हो, और सरफिरा सा हो।।
कलाकारी, फनकारी, अदाकारी उस बस्ती के बस की नहीं,
जहां हर कोई अपने यकीनों से घिरा सा हो।।
वो तो कब का जा चुका अलविदा कह कर,
वो अभी भी जैसे अंदर ठहरा सा हो।।
उस एक शख्स पर तलाश ख़त्म समझिए अपनी,
जिसकी गहरी बातें हल्की और हल्कापन गहरा सा हो।।-
किसे मनाए किसे खफा करें।।
गैर ज़रूरी है मगर ये फैसला करे।।
उसका हर एक इल्ज़ाम सराखों पर,
कश्मकश ये कि माफ़ी मांगे या शुक्रिया करें।।
उड़ने का हुनर ही बचा सकता है एक सवाल से,
इश्क़ है जिस चिड़िया से, उसे पिंजड़ा दे या रिहा करें।।
बारिशों से इश्क़ है और कच्चे मकानों से रिश्तेदारी हमारी,
जमीं फटी है, मन फटा है, बादलों को कैसे इख़्तिला करे।।
जिन्दगी किसी हाईवे की तरह ही तो है,
यहां आगे निकलने की बहुत न परवाह करें।।
झड़ते पत्तों की तारीफ़ तो ठीक है मगर,
नई कोपलों की पुकार भी सुना करे।।
हर बात इतनी काबिल नहीं होती,
कि हर बात पर मसला खड़ा करे।।
मुतमइन होना कोई हुनर, कोई राज़ नहीं,
जंग छिड़ी है भीतर, बाहर कौन झगड़ा करे।।-
जग कर देखो साथ हमारे, ये रात कहा तक जाती है।।
जाने दो जिधर जाए, ये बात जहां तक जाती है।।
तुमसे जीतने का इरादा तो पहले दिन से न था,
मैं तो देख रहा था, ये मात कहा तक जाती है।।-
तीर, तलवार, चाकू, खंजर बदल कर देख लिए।।
आंखो के कितने मंजर बदल कर देख लिए।।
गाड़ी - घोड़ा, रुपया -पैसा, शराब-शबाब और न जाने क्या क्या,
मौत न आई बस, कितने जहर बदल कर देख लिए।।
ना किसी में जान दिखी, ना कोइ धड़का,
मैंने पत्थर बदल कर देख लिए, दफ़्तर बदल कर देख लिए।।
मेरा गांव अंदर से निकला नहीं,
कितने घर बदल कर देख लिए, शहर बदल कर देख लिए।।
नए दीवानों, नई मंजिल, नए महबूब से नया कुछ न होगा,
हमने सफ़र बदल कर देख लिए, हमसफ़र बदल कर देख लिए।।
मन्नते पूरी तो करता है पर ख़त्म नहीं करता,
मैंने खुदा बदल कर देख लिए, पैगंबर बदल कर देख लिए।।
सहारा तिनके का नहीं, तैरने की कला का है,
मैंने दरिया बदल कर देख लिए, समन्दर बदल कर देख लिए।।-
करार छोड़, बेकरारी लेकर,
अब कहा जाए ये होशियारी लेकर,
बहुत दिनों से दोनो का मूड खराब है,
बहुत दिनों से नहीं निकले खाली सड़को पर गाड़ी लेकर।।-
फिर मिलो दिल्ली हाट पर, फिर अलविदा बोलना है तुम्हें।।
फिर सजदा करना है तुम्हें, फिर खुदा बोलना है तुम्हें।।
तुम्हारी आंखो को अपना खत बना कर,
अपनी ग़ज़ल में फिर से शुक्रिया बोलना है तुम्हें।।-
जो बात है मेरे महबूब की खुद्दारी में।।
वो कहा रखी है ये दुनिया दारी में।।
बिछड़ते वक्त एक तोहफ़ा दिया था उसने,
बस वही शर्ट बचा है पुरानी अलमारी में।।-
वो जानती थी कि दांव पर हर खुशी लगेगी।।
हाथ लगेगा कुछ नहीं, बस बेबसी लगेगी।।
अब उससे मोहबब्त करना अगले जन्म में,
मुझसे उबरने में उसको ये पूरी ज़िंदगी लगेगी।।-