Sagar Ojha   (Sagar Ojha)
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What am I?
The reflection of the world..!

And the WORLD is the reflection of ME...
Joined 3 December 2017


What am I?
The reflection of the world..!

And the WORLD is the reflection of ME...
Joined 3 December 2017
22 FEB AT 21:37

Many times the simple solution is not the solution.

Many times even having the solution is not the solution.

And many times we don't even want solution...

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17 NOV 2022 AT 17:39

Understanding is not compromisation,
In any sense.

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16 JUL 2022 AT 11:02

शाज़िश है ये आंसुओं की, कि किसी तरह यह बेह जाएं
कोशिश है पुरज़ोर ये मेरी, कि किसी तरह यह थम जाएं

इन्हें लगता है कि इनके छोड़ जाने पर तन्हाई कुछ कम होगी
एक इनका ही है साथ अभी, न रहे ये तो कहां हम जाएं

इस अकेलेपन में इनमे ही अपना वजूद मिला रखा हैं मैंने
गर अभी जुदा हुए तो इस ख़ुश्क़ आबो हवा में दोनों रम जाएं

हम दोनों की बेचैनगी है, कि अब वो कंधा आखरी मंज़िल हो
ये शख़्श ए वजूद सम्हल सके, और जहां ये पलकें हो नम जाए

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22 JUN 2022 AT 21:30

बातें कितनी छोटी होती हैं
कितनी बातें छोटी होती हैं

ये ख़्वाहिशों की है कशमकश
या उन हालातों का इंतज़ार है

कि बातें कुछ बड़ी हो जाये
या कुछ बातें बड़ी हो जाये

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10 OCT 2021 AT 0:14

भरम साबित हो रहे हैं हर मंज़र, असल सूरतेहाल तो वो होगा
जिसे मन, दर की आगोश में मंज़ूर कर रहा होगा...

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15 SEP 2021 AT 22:31

वक़्त की एक हद तो ज़रूर होगी
पार होने पर जिसके, अच्छा वक्त ज़रूर आएगा

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9 AUG 2021 AT 14:33

न रहा जा रहा है ना रहा जाएगा
उनकी खैरियत का ख़याल ज़ेहन से कहाँ जाएगा
ये ख़ुद की लगायी पाबंदी है, या वक़्त ने होंठ सिये हैं
कब वो कुछ कहेंगे, कब हमसे कुछ कहा जायेगा

हाल ए दिल रुंधे गलों में इस कश्मकश में है
गर बाहमी बयाँ न हो, तो कब तक सहा जाएगा
दो पल मुद्दतों बाद भी मिल जाये कभी और
खामोश हुए किस्सों में शिद्दत से बहा जाएगा

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5 AUG 2021 AT 14:25

शायद खैर ओ उल्फत मुक़म्मल
हो पाना मुनासिब नही अभी।

शायद इम्तिआज़ ए शख्सियत में,
बेहतरी की गुंजाइश और भी है।।

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8 JUL 2021 AT 18:17

Sometimes getting lost is what all we need, so that someone would find us.

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26 JUN 2021 AT 10:53

क्या राहों की भी चाह है
कि साथ गुज़रे कुछ और डगर।
अलविदा हो जाने को न कोई चौराहें हो
चाहे किसी मोड़ ने न छोड़ी कोई कसर।

हममंज़िल हो न हो
कुछ और वक़्त हो सकें हमसफर।
बस खुद की हो खैर
औरों की न हो ख़बर।

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