"आईने में क़ैद हो गया हूँ जैसे मैं,
अपने ही अक्स से एक बेगानगी सी है।
जो चेहरा कभी रौशन था मेरी पहचान से,
आज वो ही ख़ुद में गुमशुदा कहानी सी है।
रात की तन्हाई में आँखें बंद करता हूँ,
एक रौशनी सी पहली झलक में महसूस होती है,
मगर चंद लम्हों में वो भी डूब जाती है,
जैसे अंधेरों ने रौशनी की साँस छीन ली हो।
साया मेरा, जो कभी हमराज़ था,
आज वो भी मुझे पराया लगता है।
ख़ुद से मुलाक़ात एक जंग बन गई है,
और हर ख़ामोशी में एक सदा लगती है।-
रास्तों की धूल में लिपटी हुई सी,
ज़िंदगी कभी थकती नहीं,
कभी रुकती नहीं, बस चलती रहती है,
जैसे कोई पुरानी किताब की सूखी पत्ती,
जो हर पन्ने के बीच दबकर भी,
अपनी खुशबू नहीं खोती।
कभी आँखों में नमी तो कभी होंठों पे हंसी,
ज़िंदगी का हिसाब कोई समझा ही नहीं,
कभी छांव में सुकून, तो कभी धूप में तपिश,
पर हर लम्हा अपने हिस्से का दर्द भी लिखता है।
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ग़मों को दामन में लपेट कर रखता हूँ,
मुस्कुराहटों को सब में तक़सीम करता हूँ।
मैं शबनम की तरह गिरता हूँ बे-आवाज़,
पर धूप मुझे हर दफ़ा मिटाने आ जाती है…
सब कहते हैं, "आप बहुत अच्छे हैं।"
उन्हें क्या ख़बर, यही तो मेरी सबसे बड़ी ख़ामी है।
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जब तुम मेरा हाल-ए-दिल पूछ लेते हो,
रात का अंधेरा भी चांदनी सा जगमगाने लगता है।
तेरे स्पर्श की नरमी जब चेहरे को छू जाती है,
हर दर्द, हर थकान, कहीं खो जाती है।
एक लम्हा बस यूं ही पास गुज़ार दो,
मेरी खामोशी में अपना प्यार उतार दो।
फिर देखना कैसे ये तन्हा सी रात,
तेरी बातों से रोशन हो जाती है हर बार।
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लोगोंको लागता हैं
के खुली किताब हुं मैं
उनको क्या पता
काई पन्ने मैने
खुद फाड के फैके हैं-
कभी लटका मिलु किसी फंदे पे
तो समझ लेना के
इस दिल को बोझ उठाने के लिए
मैने फंदे का सहारा ले लिया-