Safar   (Safar)
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Joined 11 September 2019


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Joined 11 September 2019
3 AUG AT 12:50

रोशनी ए माहताब भी कितनी खुबसूरत है,
खुद चांद को भी काले टीके की जरूरत है।

इस रात का अंधेरा भी, चराग सा रोशन है,
जैसे ऊसे भी उजाले से सच्ची मुहब्बत है।

दुनियां का होकर, दुनिया से अलग अहसास,
ये कोई ख़्वाब है या वाकई हकीकत है।

इश्क़ के जहां का शायद यहीं दरवाजा है,
तभी तो रूह को सुकून दिल को राहत है।

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27 JUL AT 13:52

अनकहे अहसासों में से, एक अहसास है दर्द,
कभी कुछ भी नहीं, कभी बहुत खास है दर्द।

हज़ार शिकायतें कर ले, हम दर्द की लेकिन,
मिलने वाली हर हंसी, का इमकान है दर्द।

गर ये ना होता तो, आंखें रोना ना जान‌ती,
दौर ए हिज़्र में, दर ए इश्क़ का जाम है दर्द।

हर कोई भाग रहा है, अपनी खुशी की तलाश में,
और दर्द हर कोने में है, कितना आम है दर्द।

रब के करीब कर दे, गर इसे अपना लो तुम,
हालांकि बुरे नामों से यूं ही, बदनाम है दर्द।

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22 JUL AT 17:04

हवाएं सब खिलाफ थी,
नजर तक ना साफ़ थी।

था दिन भी अंधेरे सा,
नफ़रत भी जैसे माफ थी।

बचना मुहाल हो गया,
अदालत भी जैसे खाप थी।

घट गई इंसानियत दिल में,
जिंदगी तो बस मज़ाक़ थी।

फिर रोशनी जरा दिखी,
वहीं तो रब की जात थी।

मैं मरते मरते जी गया,
शैतान को यही मात थी।

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13 JUL AT 16:34

जितना अंदर उतरूं, डूबता जाता हूं,
मैं जब भी खुद से, मिलने आता हूं।

चांद उतर आता है, जैसे पहलू में,
मैं उसकी रोशनी में निखर जाता हूं।

बाहर सब कुछ फकत माया लगता है,
जब भी हकीकत को ढूंढने जाता हूं।

यहां भीड़ में भी अकेला खड़ा हूं,
वहां तन्हाई में काफिला बन जाता हूं।

सारे शोर बस बाहर तक ही है सफ़र,
अंदर से तो मैं जैसे बहरा हो जाता हूं।

खुद से मिलूंगा तो रब से राब्ता बनेगा,
मैं इसी उम्मीद को हर रोज जगाता हूं।

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30 JUN AT 18:05

जब बैचेनी की हो कोई बात, तो घर चलें आओ,
जब हो काली अंधेरी रात, तो घर चलें आओ।

घूम कर भी सारा जहां, जब सुकून ना मिले,
भीड़ में भी हो तन्हाई साथ, तो घर चलें आओ।

जब उतरने लगे चेहरे, अजनबियों के शहर में,
जब हो भगदड़ के हालात, तो घर चलें आओ।

घर से भागे जिसके लिए, गर वहीं ना मिले,
अभी तक है गर उसकी तलाश, तो घर चलें आओ।

दिल जब रोये अपनी ही, बनाई दास्तानों पर,
जब कभी हो खुद से मुलाक़ात, घर चलें आओ।

हर उम्र को बुढ़ापा, और फिर मौत है सफ़र,
तुम्हें भी हो गर ऐसी थकान, तो घर चलें आओ।

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24 JUN AT 14:26

किताब लिखूं या तुम्हें कोई खिताब दूं,
चांद को भला कौन सा माहताब दूं।

शिकायत है उन्हें याद नहीं करता,
जागती रातों का उन्हें क्या हिसाब दूं।

मैं कहूं भी क्या और लिखूं भी कैसे,
जतलाने को क्या आंसूओं का आब दूं।

इश्क़ तों मेरा भी है, क्यूं भला गिला करूं,
वो कहे तो कहे, मैं क्यूं नाम खराब दूं।

जिसकी मुहब्बत ने सच्चा इश्क़ दिया,
वो गर इल्हाम है तो मैं कोई ख्वाब हूं।

जब सब कुछ भूला दिया मैंने दिल से,
कल थी मंजिल, आज मैं उसकी तलाश हू।

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10 JUN AT 17:32

Charago Ke Shahar Me Chand Ki Talash,
Goyaki Jugnuo Ke Beech Mashal Ki Talash..

Kisika Hona Na Hona Kahi Par, alag baat hai,
Magar use dafna kar phir Lash Ki Talash..

Faisle Khud Hi Karta Hai Insan Aksar,
Magar Galat Ho Jaye To Phir Kash Ki Talash..

Zindgi Bematlab kat ti hai Ese Jiye Jaane Me,
Pass Hokar Bhi Kisi aur Khas Ki Talash..

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8 JUN AT 15:23

Zarurat kaha h mausam e bahar ki,
Mauj udane ko mahaz itwar ki..

Daulat ki duniya me har rang hai,
Jism sher ke aur rooh siyar ki..

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30 MAY AT 11:11

Kisiko Yaha Mayassar Qatra Nahi,
Kisiko Maut Se Bhi Khatra Nahi..

Khush Hai Koi Har Haal Me Yaha,
KisiKa Dil dariya Se Bhi Bharta Nahi..

♥️Safar♥️

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24 MAY AT 15:41

Subah ko andhere se guzarna padta hai,
Shazar ko bhi patjad se ladna padta hai..
Har Mujassama mitti hi tha pahle faqat,
Insan ko bhi jeene se pahle marna padta hai...

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