तेरे गलती पे तू गलत नहीं मेरे सही होने पे भी मैं सही नहीं, ये सब यहीं के बनाए गए कानून हैं अब हम जिए कहां कहीं, लोग बसर कर रहे हैं सच कहां है अब झूठ खबर कर रहे हैं, कुछ लोग को हिदायत दे छोड़ दिए जाते हैं हम होते तो तोड़ दिए जाते हैं, ये हमारी बराबरी होने की सबब में चले थे हम हमेशा दबे हुए हैं और दबा के ही छोड़ दिए जाते हैं।
"एक अरसे से ये सुकून की शामें कहीं हुजरे मे कैद हो गई थी गुमनाम, फकद आज लोग कैद हुए और शामें फिर से आजाद हो गई, फिर से वो कलियां और परिंदे अपने रूत में नोसाद हो गई, जो कल तलक मजबूर थे हम इंसानों के हंथों महसुर थे, वो फिजाएं, वो बहारें और वो गुल की हवाएं फिर से आबाद हो गई।"
बेशक अपने जात का जिक्र करना पेड़ के हर उस पात का जिक्र करना, पर उसकी जड़ों और छांव की कहानी ज़रूर बताना खुदको धर्म में बांधने से पहले हिन्दुस्तानी ज़रूर बनाना।