कभी ठहरना है मुझे,उस शांत नदी के समान जिसमें कंकड़ मारने वाले को उसके वेग का अनुमान नहीं।।
कभी तोड़ना है मुझे, हर उस बंधन के बांध को जिसने प्रयत्न किया मेरी गति को रोकने की।।
क्योंकि.......
मैं तृप्त हूं, विलुप्त हूं
अल्हड़पन लिए नदी दिग्ध हूं।।
शक्ति हूं, भक्ति हूं
काल की पुरातन निज अभिव्यक्ति हूं।।
सशक्त हूं, स्वतंत्र हूं
भावना के पद पर आसक्त हूं।।
अभया हूं,करुणा हूं
गंगा की धार में समाहित वरुणा हूं।।-
BHU'22
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Bihar🔄Banaras
दोष मेरा-तुम्हारा की ज़िद ने गंवाया बहुत है,
हर शख़्स चले जाने के बाद याद आया बहुत है..!-
न बात मान जब सती गई हैं,
अपने पीहर की चौखट पर,
लांघी है मर्यादा शब्दों ने,
दक्ष-स्वर ने शिव को साधा है,
सुन रही सभा रख मौन अधर पर,
अब आने वाली बाधा है,
यह देख सती अब कुपित हुई,
धधकी पीड़ा की ज्वाला है,
लो कूद पड़ी हैं सती कुंड में,
अब कौन बचाने वाला है,
रख देह सती का कांधे पर,
शिव ने तांडव कर डाला है,
जो वचन मान लेती स्वामी का,
ये तिरस्कार न सहने पड़ते,
हो पुनर्जन्म,मिले महादेव फिर,
ये वरदान न राम को कहने पड़ते...-
ख़ामोश हूं अभी,
इस ख़ामोशी में रहने दे।
मौन जो कह रहा,
उसे शब्दों में ढलने दे।
जब टूटेगी चुप्पी और बनेंगे लफ़्ज़,
उस क्षण का इंतजार करने दे।
क्या था, क्या बदल गया,
इस राज़ को बस अब राज़ रहने दे।
वक्त फिर से बदलेगा करवट,
अपने आप पर ऐतबार करने दे।
जो बीत गया क्या उसकी बात करे?
अभी के पल में मुझे अब ढलने दे।-
कि तुम कहो तो जान ले,
बातें तुम्हारी सब मान ले।
क्या रखा है सुनने- सुनाने में,
हम तो तेरी ख़ामोशी भी पहचान ले।
बस इक दफा तुम देखो तो सही,
तुम्हें हम अपनी आंखों में संवार ले।
एक कमी सी लगती है तेरे बिना,
फिर कैसे सब मुकम्मल हम मान ले?
आंखें भर के देखे जब तुझे कोई,
हर बार तेरी नज़र हम उतार लें।
थाम कर हाथ तुम चलना हमेशा,
और यूं ही हम ज़िंदगी गुज़ार लें।
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कितना कुछ अनकहा रह गया,
मौन के बीच लफ्ज़ सिमटा रह गया,
वो जुगनू सा उन स्याह रातों का,
दिन होते कहीं गुम सा गया,
थम गया तलाश करने का सफर,
जो छुट गया वो अधूरा रह गया,
अब मुश्किल है उस अंधेरे में लौटना,
वो खोया जो अब गुमनाम बन गया..!-
पेड़ की साखों से सूरज की किरणें सिकुरती जा रही थी,
मद्धम सी एक शाम फिर से ढलते जा रही थी,
लौट रहे सभी पंछी अपने आशियाने की ओर,
नये दिन का आगाज़ आंखों में सवेरा जगा रही थी...!-
बेवजह कुछ भी नहीं है,
ना तो बातों का फासला,
ना ही मुलाकातों का सिलसिला,
बेवजह कुछ भी नहीं है,
यूं ही खामोशी का शोर बन जाना,
इस भीड़ में भी तनहा रह जाना..!!-
ये ग़लतफहमी हमने आज भी पाल रखी है,
कि मेरी हिचकियों की वजह तु ही है,
अब ये सच हो न हो,
हम तो तुझे बस यूं ही याद करते हैं.!!!-
राह देख रही थी जो धरा,
वो फिर से आज नया जीवन पायी है,
खत्म हुई प्रतीक्षा, मंगल घड़ी लौट आयी है,
दुल्हन की तरह सजी है नगरी,
आज सिया राम संग अवध लौट आयी है।
विरह से व्याकुल थे जो उर्मिला के नैन,
देख लक्ष्मण को वो हर्ष से भर आयी है,
रौनक बिखर रहा चहूँ ओर,
आज सिया राम संग अवध लौट आयी है।-