कर्ण
सत्य,मिथ्या वर के संसय में,
धरा में आया, एक सुत महान है
ऐसा ओज सूर्यपुत्र के,अंश में विद्यमान है...
लोकनिंदा भय से कुंती ने, निर्वाह किया गंगा में
बना अधिरथ, राधेय, शुद्रपुत्र
जहां से आरंभ हुआ फिर,कर्ण का संग्राम है...
कठोर हृदय,विराग भीष्म से,मान दिया निशस्त्र वचन का
आरंभ हुआ उन्हीं से फिर,नित्यभोर,दानवीर का दान है...
इनकार द्रोणाचार्य, बने परशुराम शिष्य
स्वीकार चुनौती, बने सहचर दुर्योधन के
जो मित्रता का बना, एक दृष्टांत प्रमाण है...
बने अंगराज ,प्रकट वैशाली प्रेम का,किंतु
बंध गए गठबंधन में, सुप्रिया प्रिय महान है...
मानभंग किया द्रौपदी ने,स्वयंवर में
अपशब्द मुखरित हो गए,जिससे चीर निवासन में
जिसका अंतःकरण,क्षण क्षण रहा,संताप भयःवान है...
मिले ना भावना,पुत्र वृषसेन से,लेकिन
जब युद्ध आरंभ हुआ,शंखनाद से
सहचर बन,रण में चले फिर,एक पक्ष समान है...
स्वर्ण कुंडल दान दिया,इंद्रजीत को
संयम रख, जान यथार्थ,कुन्ती जननी का
पांच पुत्र जीवंत का,दे दिया फिर एक दान है...
ऐसे कर्ण,अतुलनीयवान है...
किया गया अंतिम रणभूमि,प्रांगण में छल
इसके भगवान ,स्वयं प्रमाण है...
आज भी उस,कुरुक्षेत्र की लहू भूमि में
कर्ण का नाम,विराजमान है
ऐसे दानवीर कर्ण महान हैं...
- साधना कैथल
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