Sadaf Shaikh   (Alfaz-E-Sadaf)
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Joined 17 October 2019


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Joined 17 October 2019
24 JUN 2021 AT 20:37

क़मर से वो शायद मुहब्बत न करते
कभी आसमाँ से बगावत न करते
122 122 122 122

(क़मर-चाँद)

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8 MAR 2021 AT 22:23

"सदफ़" कुछ शख़्स कहते हैं ग़ज़ल बिन बह्र भी, लेकिन
सजावट के बिना दुल्हन कभी अच्छी नहीं लगती
1222 1222 1222 1222

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18 JUN 2021 AT 23:49

चाँद बन रात भर हम नज़र आएँगे
यानी ता-'उम्र हम तेरे घर आएंँगे
212 212 212 212

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27 MAY 2021 AT 19:06

हो जब ख़ौफ़ गहराई का दूर तुम से
समंदर में जा के "सदफ़" ढूंँढ़ लेना
122 122 122 122

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8 MAY 2021 AT 20:15

122 122 122 122
किताबें नहीं अब कहानी बदल दूंँ
बदल दूंँ मैं राजा भी, रानी बदल दूंँ

इसी आब से गुल मिले मुझको हर पल
ये हरगिज़ नहीं है कि पानी बदल दूंँ

ये दौलत ये शोहरत हो दो पल की शायद
तो क्या इसलिऐ हक़ बयानी बदल दूंँ

बहुत दर्द इस उम्र से मिल चुके है
तो इन दर्द से डर जवानी बदल दूंँ

तरक्क़ी से ज़्यादा तबाही मिली है
सियासत भी ये अब पुरानी बदल दूंँ

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23 MAR 2021 AT 18:22

2122 1212 22/112
इक बिकाऊ वज़ीर हो जाऊँ
कुछ ही पल में अमीर हो जाऊँ

गर न परवाह हो शहद की तो
फिर समंदर का नीर हो जाऊँ

दिन न राते गुज़र रही उन बिन
हाथ की कुछ लकीर हो जाऊँ

देखकर मज़हबों के झगड़ों को
सोचती हूँ कि पीर हो जाऊँ

ना रहा हैं सुकूँ अमीरी में
क्यों ना मैं भी फ़कीर हो जाऊँ

ज़िंदगी इम्तेहांँ सदा लेगी
जल्द ही फिर तो वीर हो जाऊँ

है "सदफ़" तल्ख़ गर ज़बाँ से तो
क्यों न अब थोड़ी खीर हो जाऊँ

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6 MAR 2021 AT 12:31

122 122 122 122
ना हिंदू या ना वो मुसलमान निकला
खोदी कब्र तो सिर्फ इंसान निकला

दिया था पता आख़री बार मिलने
गई उस जगह तो वो श्मशान निकला

"सदफ़" हुक्म दौलत वालो का यहाँ है
ये इंसा दो कौड़ी का सामान निकला

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25 FEB 2021 AT 21:31

122 122 122 122
किसीको भी अंधा या बहरा न समझो
किसीकी भी मज़बूरी धंधा न समझो

ये अहसास-ए-ज़िंदगी मुझमें भी है
मुझे कोई मंदिर का घंटा न समझो

दो अल्फ़ाज़ को अहमियत मेरे भी तुम
मुझे अब तो मुर्गी का अंडा न समझो

जो अंदर से इंसानियत मर चुकी हो
वो इंसान को रब का बंदा न समझो

अदालत न इंसाफ़ देंगी सही को
जो मर ही चुके उनको ज़िंदा न समझो

ज़माना तो चेहरों का आशिक़ हुआ है
चमकती सभी चीज़ चंदा न समझो

लगेगी "सदफ़" आग होगी तबाही
यहाँ सबको अपनी ही जनता न समझो

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22 FEB 2021 AT 8:28

212 212 212 212
है शिकायत उड़ानों से पर बेच दूँ
या मशक़्क़त से पाया हुनर बेच दूँ

मेरी औकात को आज़माना नहीं
तू कहे तो ये पूरा शहर बेच दूँ

दी शिफ़ा हाथ में रब ने मेरे अगर
क्या दवा की जगह अब ज़हर बेच दूँ

है ठिकाना ये मासूम पंछी का जब
कैसे लालच में पड़कर शजर बेच दूँ

मैल बन बैठी दौलत यहाँ हाथ की
चंद पैसो की खातिर ये घर बेच दूँ

नाज़ है आसमाँ को हसीं होने पर
फिर चलो आसमाँ से क़मर बेच दूँ

है मुमकिन कि मंज़िल "सदफ़" ना मिले
इसका मतलब नहीं की सफ़र बेच दूँ

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19 FEB 2021 AT 11:06

आता नहीं था हाथ थामे रखना जब
पेंसिल पकड़ना सीखा तब उस्ताद से
2212 2212 2212

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