कुछ तो उसूल रख ऐ खुदा
जिनके पहले के गम खत्म ना हुए हो
उनको और दुख ना दिया कर-
फकीरी 🔱
दिनों का हाल कुछ ऐसा है कि
सुबह से शाम का पता नहीं लगता
और रात कैसे कटती है ये कौन बताए ।-
ना सफ़र मुकम्मल हुआ
ना ही मंजिल हासिल हुई
मैं थक गया अब
यूं बेसुध दौड़ते दौड़ते
पांव में छाले पड़े कई
हौसले हार से गए
अब राहें दिखती नहीं है
चारों ओर अंधेरा है धुंधलापन है
कुछ नजर आता नहीं
जीतने की उम्मीद बची नहीं अब
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एक अरसे से बेचैन हूं मैं
मेरी बेचैनियां मिटा दे जरा
खोया हूं यहीं कहीं
मुझको मिला दे मुझसे जरा
सोए हो गया है ज़माना
नींद को मेरा पता दे जरा
ख्वाब सारे अधूरे पड़े है
उनको पूरा करने की हिम्मत दे जरा
कब मिला था तुमसे आखिरी बार
वो अब याद भी नहीं
हर दिन निकल जाता है तेरी याद में
असल में मिल जरा
हालत देख मेरे
अपना हाल बता जरा.....-
हर कोई मंजिल का रास्ता सही बताए ये जरूरी तो नहीं
कुछ लोगों का काम ही भटकाना होता है।-
निकलते-२ निकल गए वो भी जिंदगी से..
जो कभी निकलने ना थे दिल से भी !!-