मैं तुमको सोच कर अक्सर, ये दुनिया भूल जाता हूं!
खयालों में तुम्हें छू लूं, तो फूलों सा खिल जाता हूं!
तुम्हें महसूस करने के, लिए सपने बनाता हूं!
सपने थे जो बुने, तुम्हारी आस में,
हकीकत के वो, इशारे बन गए!
सवेरा जब हुआ, तो फूल बन गए!
जो रात आई तो, सितारे बन गए!
लिखे जो ख़त तुझे....-
क्या समय है वह समय भी, जिस समय में तुम भी हो....
तुम भी हो और मैं भी हूं, वृत्तांत अपना साथ में है!
सर्ग अपना भिन्न पर, दृष्टांत अपना साथ में है!
किंतु हां कुछ दूरियों पर, किंतु फिर भी साथ साथ!
इस समयरेखा के कतिपय वासरों में तुम दिखे!
इस समयरेखा में किंचित अवसरों पर हम मिले!
यह समयरेखा नहीं तो अन्य निश्चित काल में...
किंतु हां बिलकुल समीप! किंतु हां फिर एक साथ....
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उसको हरदम लिखता आया, जितना समझ में आता था,
उससे हरदम कहता आया, जितना भी कह पाता था!
फिर भी उससे कह न पाया, ख़्वाब जो बुनता जाता था,
पर 'अज्ञात' की आंखों में, वो सब-कुछ पढ़ जाता था,
हां मगर कुछ अरसे बाद...
उसने मुझको तभी पुकारा, जब मैं आगे बढ़ आया,
मुझे बुला कर वही सुनाया, जो मैं उसे सुना आया,
मेरी चाहत मेरी पूजा सब कुछ जो झुठला आया,
आज सामने वही खड़ा है, मेरे हिस्से आज आया,
हां मगर कुछ अरसे बाद...-
हुई जो बारिश इक दोपहर में ,सारा शहर ऐसे पानी हुआ!
पत्ता-पत्ता एक शजर का, खिलखिला कर धानी हुआ!
पहना तो बहुतों ने अरमानों से उसको, रंग-ए-गुलाबी रूमानी हुआ!
तुमने जो ओढ़ा तुम पर जो आया, तब जा के रंग ये 'रानी' हुआ!-
ज़िक्र तुम्हारा कर पाएं हम, इतने कहां हमारे तुम!
ज़िक्र तुम्हारा हमसे भी हो, इतने कहां तुम्हारे हम!-
अब इससे ज़्यादा और क्या इंतेहा होगी?
तुम्हें देखना छोड़ दिया तो हर चेहरे में दिखाई देते हो....-
मैंने उसको इतना चाहा, इतना चाहा, इतना चाहा,
जितना चाहा जा सकता था।
लेकिन दो पल के जीवन में कितना चाहा जा सकता था...
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When you love someone,
And you can't even say it...
"You hate it!"-