मन कुछ उलझा सा है, दिल में एक अजीब घबराहट है। दिमाग में अतीत की गलतियां, और दिल में भविष्य की आहट है। महाभारत सा चक्रव्यू है चारों ओर, लग रहा है खुद से खुद की बगावत है। जो करता हू वो गवारा नहीं, जो करना है, रोकती मुझे एक अजीब थकावट है। किस दर जाऊ, ओर किस्से बया करू खुद को, ना अंदर राहत है, ना बाहर राहत है।
ना ही हस्ती देखी, ना कारोबार देखा। ना रखे समाज के बंधन, बस तुझमें अपना परिवार देखा। जिसकी कोई कीमत नहीं, ऐसी है मेरी मोहब्बत... फिर न कभी किसी को देखा, बस देखा तो तुझमें अपना प्यार देखा।।