एक दिन,तुमको भी,याद आऊँगा मैं,
रात में,ख्वाब बन,फिर सताऊँगा मैं।
नींद टूटे अगर,ढूँढोगी फिर मुझे,
आँखो के,खुलते ही,छुप जाऊँगा मैं।
लाख कहती रहो,भूल जाओ मुझे,
भूल कर भी तुम्हें,न भूल पाऊँगा मैं।
ज़िंदगी चार दिन की,है नवाज़ी गयी,
पाँच वे दिन सफर को,लौट जाऊँगा मैं।
सचिन यादव
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"प्यार" ये शब्द,कहने भर को छोटा सा है,मगर इसे महसूस वही कर सकता है जो असल में प्यार में है। मैं इस शब्द को हर बार महसूस करता हूँ और जब भी महसूस करता हूँ अपनी पूरी श्रद्धा के साथ महसूस करता हूँ। ऐसा नही है कि प्यार सिर्फ एक से हुआ हो, कईयों से हुआ। हाँ,मैं उस प्यार को जीने में कच्चा जरूर रहा और ये भी सच है कि जिस एक से हुआ,उस प्यार की तीव्रता सबसे ज्यादा है और आगे भी रहेगी। मुझे नही पता कि उसके मन में मेरे लिए क्या एहसास हैं। हाँ,मेरे मन में जो एहसास हैं वो जरूर एक पवित्र रिश्ते में बँधने को बेकाबू हैं। मेरी ये भावुकता,मेरी ये व्याकुलता,मेरी ये आतुरता वही शख्स समझ सकता है,जो सिर्फ और सिर्फ मेरे जैसा ही है।
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सच कहूँ तो,तुम जब सामने होतीं हो,
तो बात होठों से नहीं निकलती।
सच कहूँ तो,तुम व्हाट्सएप आती हो,
तो उँगलियाँ बात करते नहीं थकतीं।
सच कहूँ तो,तुम्हारी गली से निकलुं,
तो पैर,काबू में नही रहते।
सच कहूँ तो तुम्हारी कोई चीज़ छू लुं,
तो हाथ,कपने से नही रुकते।
सच कहूँ तो,तो क्या सच कहूँ,
सच कहने बात नहीं बनती।
सच कहूँ तो,तुमने कुछ बहम पाले हैं,
कि कुछ भी कहूं तो,बिना तकरार के,
बात नहीं चलती....
सचिन यादव-
ये तेरे नाम के किस्से,क्या अंजाम करते हैं,
भरी महफिल में यारों की,मुझे बदनाम करते हैं।
खवाबों की नुमाइश में,हकीकत खोज़ बैठा था,
सजे जो ख्वाब आँखों में,मुझे अंजान करते हैं।
तूझी से इश्क़ करता हूँ,तूझी पे नज़्म लिखता हूँ,
चलो अब उम्र जीने तक,यही एक काम करते हैं।
तेरे रस्तों के कूचे भी,तुझे मेरा ही कहते हैं,
मेरे कदमों की आहट से,तेरी पहिचान करते हैं।
जो भींगे गाल आँसू से,ज़रा तू पूछ उनसे भी,
कि किस की याद में ये रोज़,यूँ स्नान करते हैं।
सचिन यादव-
चीन युद्ध के बाद कविवर प्रदीप द्वारा रचित,"ऐ मेरे वतन के लोगों" गीत को देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरू के सामने गाकर,पंडित जी आँखो को अपने मधुर कंठ से नम करने वाली स्वर कोकिला आज मृत्यु रूपी संगीत में अपने कंठ को मौन कर हम सब से विदा ले गयीं। चीन युद्ध के बाद भारतीय हृदयों में जो मायूसी आयी थी,उसको दूर करने वाले व्यक्तियों में वो अग्रिम पंक्ति पर थीं। वास्तविकता में मृत्यु भी एक संगीत है,जिसका गान मनुष्य अपनी संपूर्ण यात्रा में नन्हें बालक की किलकारी से लेकर,जीवन के अंतिम क्षणों के अपने परिजनों के विछड़ने के वियोग तक करता रहता है।
सचिन यादव-
जिन्दगी शोले फिल्म के अग्रेजों के ज़माने के जेलर की तरह हो गयी है। मन आधा इधर भागता है चलो वो नहीं ये कर लेते हैं। मन आधा उधर भागता है चलो यार ये कर लेते हैं। वास्तविकता में होता कुछ भी नहीं। आधे इधर जाओ,आधे उधर जाओ,बाकी मेरे पीछे जाओ...
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दिल तो दिल पे आना है,समझो ना,
ये किस्सा तो पुराना है,समझो ना।
ना-ना करते,जाने कितने डूब गये,
सबको इस दरिया में नहाना है,समझो ना।
तुम भी तो इक रोज कहीं खो बैठी थीं,
तुमको भी तो याद दिलाना है,समझो ना।
शरमाते हुए कहती हो किसी गली में जाओ,
अपना तो बस एक ठिकाना है,समझो ना।
सचिन यादव-
आँसुओं से भर गये हैं पृष्ठ सारे,
पूछती हो,क्या कभी मुझ पर लिखा है।
नींद के आंलिगनो में,बिस्तरों की सिलवटों से,
अनकही सी अनसुनी,एक कहानी बनती है।
आसमां में नटखटि सी,तारिकायें गुनगुनाती,
और आँगन में लगी इक रातरानी जलती है।
आँखों की गहराइयों को पढ़ते जाओ,
फिर बताओ क्या नहीं तुम पर लिखा है।
सचिन यादव-
इश्क़ करो तो इतना करो,कि हद से गुजर जाओ,
जवानी दो-चार दिन की है,उम्र भर का इंतजार कहाँ।
बयान करना है जो हाल-ए-दिल,तो कर ही डालो,
हर शख्स जिसकी तलाश में,उसे तुम पर ऐतबार कहाँ।
सचिन यादव-
नन्ही सी गुडिया ले जाती,आम की टोकरी,
दाम पूछो तो मुस्कुराती,नन्हीं सी छोकरी।
कहती 30 रुपया किलो हैं,लेना है तो लो,
नहीं तो किसी डगर,पाँव रख चलते बनो।
टोकरी का भार,उसके भार से ज़्यादा है,
अभी से ही घर का भार,उसके सिर आया है।
तराजू के दूसरे सिरे पे,बचपन को तौलती है,
वो आम नहीं,अपना खेलना-कूदना बेचती है।
एक हाथ में उसके नन्हीं सी तीन चूडियाँ हैं,
माथे पे पसीना होठों पे नटखट सी बोलियाँ हैं।
मिट्टी से लिसे पाँव में,टुटी बद्दी की चप्पल है,
उसकी समस्या का आम बेचना ही हल है।
मोडी हुई आस्तीन में सिक्के व दस का नोट है,
कोहनी से दिखती हुई कोई पुरानी चोट है।
मुझको देख आगे निकली मुस्कराती छोकरी,
सिर पर संभाले हुए है आम की वो टोकरी।
सचिन यादव-