कटा गला मनुष्य का तो बवाल हो गया,
बेजुबां कटा, थाली सजी तो कमाल हो गया।
करो खड़ा अब मुझे भी कटघरे में,
यह कैसी प्रकृति मेरी, ये किस तरह का सवाल हो गया।
मैं नही हूं अंधा, बहरा और गूंगा भी नही,
मैं कण उस अनादि का, बेमिसाल हो गया।
देख मुड़कर पीछे तेरी दिशा है उल्टी,
काल से दूर निकला था, देख तू खुद काल हो गया।
-
ना मर मिटना तुम मेरी तमन्ना में,
तुम्हारी अपनी एक राह है, अपनी चाह भी होगी।
ये डगर उतनी खूबसूरत भी नही,
जो थामे रखे कोमल हृदय तुम्हारा।
ज़माना भले ही मुझे तुम्हारा ईश्वर घोषित करे,
पर तुम खोजना खुदको।
मैं वहीं मिलूंगा तुम्हे, जहां तुम पा लोगी तुम्हारा अस्तित्व।
ये साथ सिर्फ इस मिट्टी तक का नही,
शून्य की गहराइयों के उस पार भी हम साथ होंगे, शोना।
-
रात बीती, दिन चढ़ा, नींद वही की वही,
पलक बंद कर आंख धोई तो क्या धोई।
क्या सुलतान क्या शहंशाह एक से एक धुरंधर,
घूंट पिए जिसने ज़हर के, जिंदा रहा ना कोई।
इश्क था तो ज़माने में बिलखना था,
दुबककर कोने में रोई तो क्या रोई।
नाम खोया, इज्जत खोई, घरबार छूटा,
और खोया सब जो अब तक बसाया था,
पर आप ना खोई तो क्या खोई।
मीरा नाची घर-घर लार,
नाचा मंसूर बीच बजार,
तेरा इश्क कहाँ ठहरा?
फसल भीतर ना बोई तो क्या बोई।
बस चर्चा ही प्रयोजन है तो सब ढोंग है,
माला श्वास की ना तो जोई तो फिर क्या जोई।
-
कंफ्यूज बड़ा, असमंज में पड़ा,
राह कौन पकड़ूँ कितने राह गुज़रते हैं।
जान-पचान बस बहुत हुई,
चल अब तले उतरते हैं।
प्यास लगे पीलूँ मन भर,
फिर-फिर प्यासा मैं पाऊं,
ऐसा उतरूँ फिर रहूँ ना प्यासा,
खुद ही पानी हो जाऊं।-
मैं अपनी यादों की बगिया में बो रहा हूँ तेरे साथ बीता हर लम्हा,
जीता हूँ उन्हें तो सींचता हूँ,
यादें खिलती हैं फूलों सी तो मन महक उठता है,
मैं माली इस बगिया का यूँही बोता रहूंगा यादें,
चुनूँगा मोक्ष से परे सिर्फ तेरा गहरा एहसास।
शोना।
-
समतल से अंधों की फौज,
मुझे घूरने आती है हर रोज।
सब के सब पहाड़ चढ़ना चाहते हैं,
अपने भीतर कोई नही उतरना चाहता।
- सीधे पहाड़ से
-
यह ओस देख रही हो,
पता है तुम भी ऐसी ही हो,
गिरती हो आंखों से शांत शीतलता सी मेरे हृदय पर,
तत्क्षण धुंधला जाते हैं दूर खड़े सभी जज़्बात,
और फिर जब तुम पिघलकर तरल हो जाती हो।
मैं भी चुपचाप भीग लेता हूँ,
और चाहता हूँ भीगता रहूँ सुबह, सांझ,
जब तक ये सूर्य सुखाकर भस्म ना कर दे सारा अस्तित्व,
तुम बस यूँही गिरती रहना ओस बनकर,
शोना।-
ताज-ए-हिंद की हिफाज़त में निकला था एक शेर,
चोटी 4875 पर घात लगाये गीदड़ों ने लिया था घेर।
फौलादी हौसलों के आगे दुश्मन का किला ढह गया,
देश के लिए जिया था वो, देश का होकर रह गया।-
जो एक नाता है अपनेपन का सा, निःस्वार्थ, पवित्र,
जीवन के खुशनुमा पलों का जैसे सजा हो एक चित्र,
मन भूल जाता है बातें जहाँ की जिनके होने भर से,
शुक्र है ईश्वर का, मुझपर भी हैं कुछ सच्चे मित्र।-