रात बीती, दिन चढ़ा, नींद वही की वही,
पलक बंद कर आंख धोई तो क्या धोई।
क्या सुलतान क्या शहंशाह एक से एक धुरंधर,
घूंट पिए जिसने ज़हर के, जिंदा रहा ना कोई।
इश्क था तो ज़माने में बिलखना था,
दुबककर कोने में रोई तो क्या रोई।
नाम खोया, इज्जत खोई, घरबार छूटा,
और खोया सब जो अब तक बसाया था,
पर आप ना खोई तो क्या खोई।
मीरा नाची घर-घर लार,
नाचा मंसूर बीच बजार,
तेरा इश्क कहाँ ठहरा?
फसल भीतर ना बोई तो क्या बोई।
बस चर्चा ही प्रयोजन है तो सब ढोंग है,
माला श्वास की ना तो जोई तो फिर क्या जोई।
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