Sachin Patel (लोधी छत्रिय)   (SPK Sachin Lodhi)
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Joined 7 October 2020


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Joined 7 October 2020

तुम चंद्र छवि मृगनयनी हो, तुम ही तो "स्वर्ग" की रंभा हो,
तुम धरा, गगन की सुंदरता, तुम अमिट,अजेय अचंभा हो।

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तमन्ना तुझे देखने की है, पर समय तेरे पास कभी रहता नहीं,
ये आँखें भीगी-भीगी रहती हैं, तो 'निगाहों' का क्या कसूर है।

कल तक तो तुझसे 'अनजान' थे, आज तू जीने का सहारा है,
प्यार रंग भरता जिंदगी में, यहीं दुनिया का अनोखा 'दस्तूर' है।

वक्त भी बड़ा बेदर्द है, कभी मिलाता है, तो कभी तड़पाता है,
तू मेरे साथ नहीं, तो कुछ खास नहीं, वरना  आनंद भरपूर है।

कई रंग ज़िंदगी के मैंने देखे, पर दुनिया में तुझ सा नहीं देखा,
दुनिया पास नहीं पर तू मेरी ज़िंदगी में है, आज यहीं गुरूर है।

कुछ पल ही तो बीते हैं अभी, पर लगता है, ये रिश्ता गहरा है,
मिन्नतें बहुत करता, तेरी खुशी के लिए, तू चाँद का जो नूर है।

तेरा ऐसे मेरी  ज़िंदगी में आना, किसी "करिश्मा" से कम नहीं,
दिल का रिश्ता है,तो चाँद भी पास है, वरना पड़ोसी भी दूर है।

कहने को तो ढाई अक्षर है,प्यार, पर ये दुनिया में रंग भरता है,
हर पल बस तुझे ही देखूं, आज ये निगाहें देखने को मजबूर हैं।

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मुझे तेरी सूरत ऐसी लगती, जैसे मेरी प्यारी काली भैंस लगती।
दिल पर मत लेना इन बातों को, क्योंकि तू तो पारियों की रानी लगती।

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सुबह हो या शाम हो बस, उसकी ही छत को ताकते रहते,
एक 'झलक' को तरसे यह दिल,बस आंखों से यही कहते।

क्या कहूं मैं.? जादू उसकी "नजरों" का कुछ इस तरह था,
सौगात 'खुशियों' की लेकर आना, दिल से बस यही कहते।

तस्वीर बस उसकी ही रहती, मेरी भीगी 'आँखों' के सामने,
तुझे देखने की 'तड़प' कितनी है, हम क्या-क्या नहीं सहते।

देखने को तो हम 'रोज' देखते, फिर भी ये मन नहीं भरता,
कैसें समझाऊं मैं, दिल में बस साथ रहने के अरमान रहते।

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मोरे कान्हा की "छवि" प्यारी, रखता रूप हजार,
मैं तो बस सज-धज के संवरू,बदल रूप श्रंगार।

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जन्म लिए जगपालक प्रभु, भादों की आधी रात में,
ग्रह, तारे, नक्षत्र बदले, नारायण अवतार के साथ में।

काले घने मेघों ने घनघोर वर्षा कर, धरा को पवित्र किया,
बिजली की चकाचौंध ने उजाला, मेघों ने शंखनाद किया

प्रकटे प्रभु देवकी-वासुदेव समक्ष, दुराचारी कंस के कारावास में,
हर्षित हो वासुदेव बोले, बस जी रहे प्रभु आपकी ही आस में।

प्रकाशपुंज संग नारायण, कारावास से अंतर्ध्यान हुए,
देवकी-वासुदेव सब भूल के, सपना समझ हर्षित हुए।

देवकी की कोख का प्रकाश, निशा में कारावास चकाचौंध किया,
वसुदेव बोले प्रिय!, पद्म नारायण प्रभु ने ही, ये चमत्कार किया।

चितचोर, मुरलीधर के, आगमन की घड़ी अब आ गई,
तिथि है अष्टमी, भादो महीने की आधी रात आ गई।

देवकी की कोख से अवतरित हुए, श्री प्रभु सुंदर "बाल रूप" में,
आकाशवाणी हुई नंद घर ले जाओ, मैं जन्मी बालिका रूप में।

महामाया के प्रभाव से, बेड़ियाँ संग सब ताले खुल गए,
पहरेदार सोये घोर निद्रा में, देख वासुदेव स्तब्ध रह गए।

"मन-मोहन कान्हा" बाल रूप, वासुदेव सूप में रख चल दिये,
मनमोहिनी छवि की झलक को, प्रकटे देव संग पुष्प वर्षा किये।

नीचे पढ़ें..👇👇👇👇

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सभी के लिए खुशियों से भरा और समृद्धि से भरपूर हो।

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'वारिद' बरसन लागे अति उग्र,
अष्टमी तिथि 'भादों' की है आयी।
प्रकटे "नारायण" धरती पर,
नैनन में प्रभु, 'छवि' बसायी।।

धन्य हुआ, अहो भाग्य! हमारे,
जो लागी चरण रज़, माथे हमारे।
'देवकी मात्' हर्षित हुई भारी,
"वसुदेव" कहै, प्रभु आए द्वारे।।

बालक रुप लै, वत्सल्य जगावै,
श्यामजू सबहिं, ग्वालन उर छाए।
तीनहुं लोक, हर्षित हिय भारी,
सुर, नाग संप्रति, "कुसुम" बरसाए।।

तोरि महिमा बस, तू ही जानत,
'खल पामर' लीला, समझ ना पावे,
तू मोर-छल, शीर्ष किरीट सोहे,
"शेष भुजंग", "प्रदीप्ति" बढ़ावे।।

मनमोहन कान्हा, छवि प्यारी,
माखन मुख से, अब छूटत नाहीं।
खेलत-खेलत, नाग को नाथे,
माधव बने, सुख कुंज की छाहीं।

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जब भी मैं उसको देखता हूं, तो,
दिल कुछ बोलता है, आँखें कुछ बयां करती हैं।

बोलना तो दिल बहुत कुछ चाहता है,
पर ये "निगाहें", हर पल रोका करती हैं।

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हम खुशी बाहर देखते रहे, पर सारी जन्नत उसकी आँखों में थी,
कितनी ही देखी मैंने दुनिया में, पर वो 'मृगनयनी' लाखों में थी।

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