यूं गुजरते वक्त में, "रफ़ाक़त" गुमशुदा हो गए,
तक़दीर क्या बयां करूं,अपने सब नूर हो गए।-
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और उनकी अनुभूति
हृदय को शांत कर देते है, विचारों के उठ रहे ज्वर को अपनी शीतलता से शीतल कर देते हैं।-
सच्चा प्रेम कभी बंधन में नहीं रखता,
ये तो विश्वास की डोर पर जुड़ा एक अंतर्मन का अहसास है।-
तुम बलवान हो, अहंकार मत करना,
धूल में मिलते देखा इस दुनिया ने,
बड़े-बड़े बलबानो को।
इन आंखों ने तन की ताकत को हारते,
मन को जीतते देखा है।
समय के आगे झुकते देखा है, योद्धाओं को।-
पंख उड़ने की चाह में, कुछ "घात" लगाए बैठे हैं,
दुनिया को क्या बोलें हम, खुद खंजर लिए बैठे हैं।
ज़िन्दगी के सफ़र में, हम कुछ आस लगाए बैठे हैं,
किस्मत देखो,शान्त है मन, फिर भी निराश बैठे हैं।-
खुद ही थामे बैठा हूं, औजार अपनी बर्बादी का,
काट दू पंख अपने, या खींचू डोर आजादी का।।-
अश़्कों का सैलाब ही तो आया है,
दुआ ही आज दवा बन जख़्म भर रही!
सफ़र-ए-ज़िंदगी कैसा इम्तिहान है,
दास्तां-ए-हुज़्न, हया से आह निकल रही।
मुकम्मल नहीं होता, दस्तूर इश़्क का,
ज़िंदगी कटघरे में कैद छटपटा रही!
नूर-ए-नज़्म भी कयामत ढाता है,
बस गलत हम हैं, क्या हर बार वहीं सही।
कहर ये कैसा मेरी ज़िंदगी में आया,
क़िरदार अलग,पर मुहब्बत वही!
तमन्ना तो अपना बना आगोश में लेने की,
पर इश्क़ इबादत अल्फाज़ों में ही सही।
छटा इन आँखों की कभी लाजवाब थी,
वीरानगी से आज, रौनक ही दफ़न हो गयी!
ख़्यालात कितने मिलते थे हमारे,
आज उनके पुराने ख़त पर ही धूल जम गयी।-
पर लगता,
जैसे एक सपना है, दुःख बीते कुछ दिन गए,
अब संघर्ष बहुत भारी है।-
पल बिताए संग में,
आज मुझको झकझोर रहा,
रूठे-रूठे से रहते अक्सर,
हाल-ए-दिल कभी तो बयां करो.!
ऐसा दिल का खूबसूरत लम्हा,
मुक्कम्मल हो, यहीं दिल की आरजू,
तक़दीर को क्या दोष दूं,
जब अपना ही सिक्का खोटा है।-
आप सभी को सपरिवार उत्तरायण,
और सूर्य के धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश के साथ मकर संक्रांति, पोंगल, और
पतंगों के पर्व, लड्डुओं के त्यौहार की
बहुत-बहुत शुभकामनाएं।
🪁🪁🍨🍱-