Sachin Kashyap   (@Tuwar_writes)
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Joined 29 April 2018


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11 AUG 2022 AT 21:54

कहां तक ठीक है?

जमीर की गवाही में कदमों का रुक जाना
सामान बेचते बेचते खुद का बिक जाना
कहां तक ठीक है?

हसीं के मुखौटे ओढ़कर मिलना
सच्चाई से मुंह मोड़कर मिलना
कहां तक ठीक है?

आदमी के दिमाग में शौचालयो का होना
निर्बलो के मन में वैश्यालयो का होना
कहां तक ठीक है?

कमजोर को यहां दबा देना
बने हुए को और बना देना
झूठ को सच दिखा देना
आत्मसम्मान को जला देना
कहां तक ठीक है?

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24 JUL 2022 AT 11:41

ट्रेन के नीचे कटकर,
पानी में डूबकर,
फंदा लगा के मर जाना।

इन सबसे मुश्किल है,
शाम को,
खाली जेब घर जाना।

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22 JUL 2022 AT 15:31

मैं मरा नहीं

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22 JUL 2022 AT 15:29

इस शरीर को नश्वरता पे है कुछ रो रहे,
इनकी बुद्धि को देख आज हुं हैरान मैं।

इस पूरे जहान में,हवा,पानी,आसमान में,
मैं तुम्हें जिंदा मिलूंगा किसी के आत्मज्ञान में।

इस शरीर को ढक दिया है सफेद चीर से,
मैं मरा नहीं, बस मर गया हुं शरीर से।

मैं भगीरथ की भक्ति हूं,ब्रह्मास्त्र की शक्ति हूं,
कबीर का बीजक मैं ही,मीरा का गान हूं।

मैं सत्य हुं,मैं नश्वर हूं,सारा ब्रह्मांड हूं,
मैं ही शिव, कृष्ण,मैं ही भगवान हुं।

पता पूछ लेना मेरा गंगा के नीर से,
मैं मरा नहीं, बस मर गया हूं शरीर से।

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22 JUL 2022 AT 15:25

हाथ, पैर, होठ पड़ गए है अधीर से,
मैं मरा नहीं,बस मर गया हूं शरीर से।

ये जो हवा के साथ साथ बह रही है,
देखो तुमसे मेरी आत्मा कुछ कह रही है।

मेरे मरने पर खुश होने वाले सुनो
एक गहरे राज को,
मेरे शरीर को तो मार दिया लेकिन
कैसे मारोगे मेरी आवाज को।

अब दबाओ ,जलाओ या नोच लो मांस मेरा,
कुछ फर्क पड़ता नही आत्मा के सरताज को।

अलग हो चुका हूं इस भटकती भीड़ से,
मैं मरा नहीं, बस मर गया हूं शरीर से।

जो जीते जी इस शरीर से कभी मिले नहीं,
आज वे ही सबसे आगे है इसके गुणगान में।

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22 JUL 2022 AT 15:21

मैं मरा नहीं

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8 JUL 2022 AT 1:37

तुम्हारी कोयल सी बोली का मधुर संगीत
ओ मेरे मनमीत
मुझे पागल कर रहा है

तुम्हारी सांसों की गर्माहट का ये गर्म मौसम
चंदन की महक सा हवा में फैलता हुआ यौवन
मुझे पागल कर रहा है।

तुझमें सब और सब में तेरा ही दिखाई देना
हर वक्त हर पल बस तेरी यादों में रहना
मुझे पागल कर रहा है।

तुम्हारी आंखों में प्रेम, हया,शर्म और लज्जा
तुम्हारे किरदार में बसा हुआ वो छोटा-सा बच्चा
मुझे पागल कर रहा है।

तुम्हारा गुस्सा, तुम्हारा शर्माना, तुम्हारा मुस्कुराना
बातो के बीच में वो बालो में उंगली का उलझाना
मुझे पागल कर रहा है

मैं तुमसे,तुम्हें चुराकर,तुम में डूब जाना चाहता हूं
सच तो ये ही की मैं खुद ही पागल होना चाहता हूं,
इसलिए मुझे ये सब कुछ पागल कर रहा है।

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27 MAY 2022 AT 0:11

ये चमड़ी वाला भोग बुरा ।
ये दमड़ी वाला रोग बुरा ।
संसार त्याग जो पा ले,
ऐसा हर एक जोग बुरा ।

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27 MAY 2022 AT 0:00

कभी हल्का तो कभी भारी रहेगा
लेकिन सफर जिंदगी का जारी रहेगा

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10 MAY 2022 AT 23:09

ना गुजरने वालों की, गुजरी ना कइयों के साथ
और
गुजारने वालो के लिए एक उम्मीद ही काफी थी

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