ख्वाईश तो बहुत है साथ चलने की मगर राह में वो हमसफ़र कहां मुकम्मल होती आरज़ू ओ जुस्तजू मगर मंजिल में नूर कहां लुटा देता मैं आमदनी और दौलत मगर मुकाम पर वो सुकून नहीं डूब जाता मैं हर बार जब तैरता मगर दिल में उसकी वो गहराई कहां
|| विठ्ठला || तुझिया नामात पाहिला मी क्षण ही निरंतर ही | न मोह मला विश्वाचा पण तूच ते विश्व ही | ह्या बुद्धीत तू विचार रे ह्या शरीरात तू प्राण रे | तू चि साक्षात्कार असुनी तूच निर्गुण निराकार रे |