सुकून में याद ना आए तो जिंदगी कैसी
उन फसानों की बदौलत बरकत जो है— % &-
ये अक्स जो संभाले बैठा हूं वो
कोई खयाल नहीं, पूरी कहानी है
नजर में समाई एक हसीन
दास्तां कुछ बरस ही पुरानी है-
मुसीबतों के सैलाब तू आ मेरी राह
डूबा हुआ पत्थर शायद किनारे लग जाए
इन ठोकरों की दुशवार है जिंदगी
खुश किस्मत किसी मोड़ पे ठहर जाए-
सुखन, शायरी और स्याही बेशकीमती है मगर
सिलवटों भरे काग़ज़ में वो दम कहां-
ख्वाईश तो बहुत है साथ चलने की मगर
राह में वो हमसफ़र कहां
मुकम्मल होती आरज़ू ओ जुस्तजू मगर
मंजिल में नूर कहां
लुटा देता मैं आमदनी और दौलत मगर
मुकाम पर वो सुकून नहीं
डूब जाता मैं हर बार जब तैरता मगर
दिल में उसकी वो गहराई कहां-
इवलेसे ते अंतःकरण पण किती तो घालमेल
जपून ठेवू जितके, तितके ते बिघडेल
मनात जे स्वच्छंद नांदते, भाव ते नाही विसावत
तू एकनिष्ठ रहा तर्काशी, तिथे शंका नाही संभवत
कर्म करूनी जे मिळते ते समाधान आणि आनंद
तर भावनेला ही समजून, राहशील तू स्वानंद-
राह में तन्हा रहें ना रहें मंजिल आंखों से ओझल नहीं है
खुशबू फूलों की मिलनी ही है दामन में कांटे रहें ना रहें
पसीने को खबर है हर एक कोशिश हर एक आमद की
खबर उसकी राह में डटी है सरहद में दरार रहें ना रहें-
जहाँ ये मेरा कोई संभाल लो जरा कुछ देर
मैं अपने होश को अभी खो रहा हूं
न दरबार में मौजूद न अपनों से मुखातिब
मुसीबतों की राहों में मेहरूम हो रहा हूं
बहुत हैं चाहतें इंसान निगेहबान रहे अरमानों का
वोह शैतानों से दूर राह मैं ढूंढ रहा हूं
कांटें हैं बहुत लेकिन सबर हमसफ़र है मेरा
घने अंधेरों में नूर ए हयात मैं खोज रहा हूं
ऐ फरिश्ते तेरा हर दम शुक्र गुज़ार रहूं
मेरा संभाला हुआ जहां मैं लेने आ रहा हूं-
ग़म नहीं उतना जब तुम दूर कहीं चले गए
ग़म तो इस बात का है कि दूर से कभी याद ना किए
जहां भी रहो इक अक्स तो मेरे दिल में रहेगा
ग़म तो इस बात का है के बिना खबर दिए चल दिए
क़यामत हो के रहेगी फिर इक दिन जरूर मिलेंगे
गुस्सा तो कर दिया होता, न जाने किस बेबसी से चल दिए
दफ्फ्तन इन आंखों का मिलना तब तुम्हें राज़ ना आएगा
क्या तुम्हें भी पता था क्या तुम्हारी निगाहें थे कह गए
यादें तो मसरुफ़ हैं, उनको मुंतज़िर जो रहना है
जमाने को क्या है पता इन्हें उम्मीद तुम दे गए-
|| विठ्ठला ||
तुझिया नामात पाहिला मी क्षण ही निरंतर ही |
न मोह मला विश्वाचा पण तूच ते विश्व ही |
ह्या बुद्धीत तू विचार रे ह्या शरीरात तू प्राण रे |
तू चि साक्षात्कार असुनी तूच निर्गुण निराकार रे |
-