सच है...
बिना सोचे तुम्हें कोई रात नहीं होती...
तुम्हारे शिवा...
अब किसी से मेरी बात नहीं होती...
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उसकी जुल्फो से मेरा ध्यान हटा दे कोई...
जाके उसको मेरा सब हाल सुना दे कोई...
मुसलसल उसकी यादों मे खोया हूँ...
उसके तसव्वुर में ही हर रात सोया हूँ...
बताना सब पर मेरी कैफ़ियत न कहना...
मेरी आशना को क्यूँ ये रंज सहना...
जब बात करे मेरी तो उसे ये इल्म कराना...
वो है मेरी सोहबत का हसीन अफसाना...
उसकी यादों से मेरी अदावत करादे कोई...
हर उसकी हाफ़िज़ा को भुला दे कोई...
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(कोरोना हारेगा)
अनहद पीड़ा, भयावह दृश्य, लाचारी...
जिसकी बदौलत बन्द हुई दुनियादारी...
अब बस कुछ ही दिनों की बात है...
मंज़र बदल से जाएंगे...
ये दिन भी गुजर जाएंगे...
(कालाबाजारी)
वे लोग जो मानवता पर कलंक हैं...
जिनमें मनुष्यों जैसा न कोई अंश है..
जिनको जरुरी है अशर्फी, दूसरे की जान से...
वे भी सम्भल से जाएंगे...
ये दिन भी गुजर जाएंगे...
(चिकित्सा सुविधा)
जितनी भी है सुविधा, उसमें गुजारा कर रहे हैं...
यमराज से भी दो-दो हाथ करने में न डर रहे हैं...
सत्-सत् नमन उन चिकित्सकों, उन भेषजों को...
जाते-जाते भी जानें बचा जाएंगे...
ये दिन भी गुजर जाएंगे...
सचिन चतुर्वेदी-
सुनो,
मेरे सपने की जो परी थी, वो रूप हो तुम...
कंपकपाते जाड़े की, धूप हो तुम...-
सुनो, तुम मुझे उतना ही जानते हो...
जितना मै चाहता हूँ की तुम्हे पता होना चाहिए...-
मुश्किल समय तो है क्योंकि,
बिना पाॅजिटिव हुए पाॅजिटिव बने रहना है...
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(चिकित्सा सुविधा)
जितनी भी है सुविधा, उसमें गुजारा कर रहे हैं...
यमराज से भी दो-दो हाथ करने में न डर रहे हैं...
सत्-सत् नमन उन चिकित्सकों,उन भेषजों को...
जाते-जाते भी जानें बचा जाएंगे...
ये दिन भी गुजर जाएंगे...-
(कालाबाजारी)
वे लोग जो मानवता पर कलंक है...
जिनमें मनुष्यों जैसा न कोई अंश है...
जिनको जरुरी है अशर्फी, दूसरे की जान से...
वे भी सम्भल से जाएंगे...
ये दिन भी गुजर जाएंगे...-
(कोरोना हारेगा)
अनहद पीड़ा, भयावह दृश्य, लाचारी...
जिसकी बदौलत बन्द हुई दुनियादारी...
अब बस कुछ ही दिनों की बात है...
मंजर बदल से जाएंगे...
ये दिन भी गुजर जाएंगे..-
ना दौलत,ना शौहरत...
ना कविता,ना किताब...
ना दोस्त,ना जिंदगी...
जब मरूंगा तो साथ ले जाऊंगा,
अपनी ये आवारगी...
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