Sachin Chandelia   (Sachin Chandelia)
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Joined 22 May 2018


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Joined 22 May 2018
26 AUG 2023 AT 20:42

जैसे हंसता हुआ हर चेहरा सच्चा नहीं होता,
वैसे ही रोता हुआ हर शख्स भी सच्चा नहीं होता,
कुछ अपने से लगने वाले चेहरे कभी कभी अपने नहीं हो पाते हैं
और कुछ गैर से लोग भी कभी कभी अपनों से ज़्यादा कर जाते हैं
और सपनों को घर देने वाले अक्सर, वहीं अपना घर जला जाते हैं

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26 AUG 2023 AT 0:43

अपने ही खा गए अपना कहते कहते,
और बचा जो रहा,
सपने भी खा गए सपने दिखाते दिखाते...

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19 JUL 2023 AT 23:44

बयां नहीं होते
अपने अब जज़्बात,
कि होती नहीं ख़ुद से
अब ख़ुद की पहले की तरह बात,
और देखने को लगती है
भीड़ यूं तो बहुत,
मगर, दिखता नहीं खड़ा
कोई अपने साथ...

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10 JUN 2023 AT 2:03

वो भी एक वख्त था, ये भी एक वख्त है,
वो भी गुज़र गया, ये भी गुज़र जाएगा...

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8 JUN 2023 AT 23:27

Hard day for me....
to choose between love or life,
How can I leave a mother,
without loosing a wife.
What do I do, it's quite a tough choice,
For one is my destiny, another my voice.
For love is a dream that I want to chase,
While mom’s love is a comfort
that I can always embrace.

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12 MAY 2023 AT 19:22

तेरे दिए ज़ख्म है कि भरते ही नहीं,
और तू है कि नए ज़ख्मों पर भी
ज़ख्म दिए जा रहा है ...

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26 APR 2023 AT 20:39

मैं फिर से जन्म लूंगा दोबारा तेरी कोख से,
तू इस बार मेरे हाथों से बेड़ियां लगा देना,
मैं हो न जाऊ बरबाद इस जनम सा,
चल न पाऊं उस राह
वो पेड़ियां काट देना...

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10 APR 2023 AT 23:29

आँखों से बह जाए गर अश्क मेरे
तो रोकना मत दोस्तों,
लड़का हूं यहीं खयाल
मेरे आंसुओं को बहुत सताते हैं...

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29 SEP 2022 AT 9:56

मैं वो पतंगा हूँ
जो रौशनी की चाहत में,
ख़ुद को जला देता है...

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12 SEP 2022 AT 23:14

कि सपनों में आग लगाई है,
जिसपर, मैं चिता समझकर लेटा हूँ,
एक गुड़िया है मेरे पास,
जिसका, पिता समझ मैं बैठा हूँ।
औऱ, बैठा हूँ इंतेज़ार में,
कि कब ख़ाख हो जाऊं मैं,
बस ज़रा सी देर, और राख़ हो जाऊं मैं,
औऱ भुज जाऊं मैं हल्के झोंके से,
एक दीया मैं खुदको कहता हूँ,
सपनों में आग लगाकर,
मैं चिता समझकर लेटा हूँ,
मैं, चिता समझकर लेटा हूँ...

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