"पूरा दिन निकल जाता है,पता भी न चलता
फिर आती है स्याह काली रात
मन खो जाता है,अतीत की गहराहियों में
याद आती .....
वो बीती यादें
वो बीते लम्हें
वो हँसी के पल
वो लोग जो ना चाहते हुए भी बिछुड़ गए
वो लोग जो चाहते हुए भी मेरे न हुए
वो लम्हा जब मैं बहोत खुश था
वो लम्हा जब मैं बहोत रोया था।
जैसे-जैसे अंधेरा बढ़ता जाता,वैसे-वैसे पुरानी यादें
ताजा होती चली जाती
और पता भी नही चलता कब नींद ने
अपने आगोश में ले लिया
और फिर सुबह आँसुओ से भीग तकिया रात का
दर्द बयाँ करता है।।
-