Dear तुम......
क्या लगता है.....
इतना आसान रहा होगा ये फैसला मेरे लिए
बहुत समझाया है मैंने खुद को इसके लिए।
भूल जाता हूँ मैं अपनी हद सब जानते हुए भी
अब हद में रहना बहोत जरूरी है मेरे लिए
बस परेशान हूँ मैं खुद ही खुद से
तो इसमें तुम भी क्या कर सकती हो मेरे लिए।
मुझे लगता है कि मैं हस्तक्षेप कर रहा हूँ
तुम्हारी निजी जीवन मे.....
तो मुझे जाना ही सही लगा बस तेरे लिए।
मुझे नही आता इमोशनली ब्लैकमेल करना
लेकिन हाँ कुछ भी कर सकता हूँ मैं खुशी के तेरे लिए।
मुझे भी अच्छा तो नही लगता होगा ऐसी हरकतें करके
हाँ लेकिन अब लगता है कि यही सही रहेगा तेरे लिए।
जानता हूँ बहुत परेशान और रुलाया है मैंने तुझे
माफी शब्द काफी नही है इसके लिए।
अब मर चुका वो शख्स,नही आयेगा वापस लौटकर
प्रयास करना व्यर्थ है अब उस शख्स के लिए।
अब तो रो भी नही सकता मैं किसी के सामने
कोई नही है जो बस मेरा हो सिर्फ मेरे लिए।
हाँ शायद जाना जरूरी है अब तेरी खुशी के लिए।।-
मन के भाव लिख लेता हूँ।✍️
परम् मित्र :- भाई मुझे तो ₹2000 के नोट बंद होने से कुछ फर्क ही नही पड़ा,क्योकि है ही नही मेरे पास😁
मैं :-👇
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कुछ हासिल नही हुआ
अदब से पेश आकर तुझसे ऐ ज़िन्दगी
तो अब क्यों ना थोड़ा
बदतमीजी से पेश आया जाए।।
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ज़िन्दगी
एक खुली किताब जैसी है.....
किसी ने बस एक पेज पढ़ छोड़ दिया
किसी ने पढ़ना तक लाजमी न समझा
किसी ने बस पन्ने उथले
तो किसी ने वक़्त के हिसाब से पढ़ा
और रही सही कसर
सबक रूपी झोंको ने पूरी कर दी
एक-एक पन्ना अलग कर दिया
किताबे- ज़िन्दगी का।।
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सुकून........
एकान्त सुदुर पहाड़ी इलाका
चाँदनी रात और टिमटिमाते तारे
वो बहती हवा के झोंके
पास बहते पानी से आती कलकल की आवाज
धीमी आवाज में चलते पसंदीदा गाने
जलती आग और उठता धुआँ
मैं और वो अनगिनत यादें
और.......
एक कप गर्मागर्म चाय।।
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बेहतर की तलाश में उसने उसे भी खो दिया
बस इतना कह वो फूट-फूटकर रो दिया।।
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तुम वो उलझी हुई कहानी हो
जिसे मैंने सुलझा समझने की कोशिश तो की
लेकिन.....
मैं तो एक छोटा सा किस्सा मात्र था
फिर भी
तुमने तो मुझे पढ़ना तक लाजमी न समझा।।
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"अब फर्क नही पड़ता किसी के कहने भर से
इसीलिए लोगों को कहने देता हूँ।
सभी को समझा नही सकता
इसीलिए अब रहने देता हूँ।
अभी थोड़ा वक्त है,वक़्त बदलने में
इसीलिए थोड़ी तकलीफ मन को सहने देता हूँ।
किस्मत का लिखा बदल नही सकते
इसीलिए खुद को वक़्त के साथ बहने देता हूँ।
कितने लोगों को चुप करवाएगी ये ज़िन्दगी
इसीलिए सभी को सब कह लेने देता हूँ।।-
"पूरा दिन निकल जाता है,पता भी न चलता
फिर आती है स्याह काली रात
मन खो जाता है,अतीत की गहराहियों में
याद आती .....
वो बीती यादें
वो बीते लम्हें
वो हँसी के पल
वो लोग जो ना चाहते हुए भी बिछुड़ गए
वो लोग जो चाहते हुए भी मेरे न हुए
वो लम्हा जब मैं बहोत खुश था
वो लम्हा जब मैं बहोत रोया था।
जैसे-जैसे अंधेरा बढ़ता जाता,वैसे-वैसे पुरानी यादें
ताजा होती चली जाती
और पता भी नही चलता कब नींद ने
अपने आगोश में ले लिया
और फिर सुबह आँसुओ से भीग तकिया रात का
दर्द बयाँ करता है।।
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