यह खुदा की रहमत थी, के हमें इस मुकाम तक पहुंचा गया।
अब वो अपने रास्ते हैं, और हम अपने।-
शेहेर में नही हो तुम तो देखो
ठंड काफी बढ़ गयी है यहां
दो कमीज़ जादा पहन कर
कम्बल ओढ़े बिस्तर पर
अब नींद काफी अच्छी आने लगी है।
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ये जो अदा है तुम्हारी
उन्हीं ने हमे छेड़ा
वारना हम तो अपने ही
रास्ते चल रहे थे ।-
शेहेर में नही हो तुम तो देखो
ठंड काफी बढ़ गयी है यहां
दो कमीज़ जादा पहन कर
कम्बल ओढ़े बिस्तर पर
अब नींद काफी अच्छी आने लगी है।
शेहेर में नही हो तुम तो देखो
बेवक़्त बरसात होने लगी है यहां
दो प्याला चाय भर कर
मौसम में गुम
अब खुद ही पीने लगा हूँ।
शेहेर में नही हो तुम तो देखो
सड़के भरी लगने लगी है यहा
दो हांथों को सीने से मोडकर
कुछ निहारते सड़क किनारे
अब अकेले ही चलने लगा हूँ।
शेहेर में नही हो तुम तो देखो
अब ख़ुद से काफी बात होने लगी है यहां।-
समंदर की लहरें जब पैरों से आ छुई
जरा ख़ामोशी मुझमें मेहसूस हुई
महसूस हुआ कुछ जिससे बेखबर था
मन के वेहेम में खोया हुआ सा...
समंदर की लहरें जब पैरों से आ छुई
मुझे ख़ुद से रिहा कर गई ।
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इस पल को छोड़कर
अब सब जाने लगे है,
औरों में पेहेचान बनाने
अपनो से पेहेचान मिटा रहे है।-