वो आए मेरे ख़्वाब में बस रात के पहर !
सहर हुआ तो फ़िर से वो ख़्वाब हो गए !-
Heard first azaan on 25th May
Engineering student
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क्या मिशाल हो सब्र ए हुसैन का अली अक़बर के लाशे पर !
नबी इब्राहीम ने जो आंखों पे पट्टी बांध ली !-
तेरी कब्र पे एक फ़ूल चढ़ा आता हूं !
तेरी याद आए तो अपने दिल को हो आता हूं !-
कितना दब चुका हूं उनके बनाए फाइलों में मैं !
मुझमें खुश्बू भी ना रही बाकी अब मेरे वजूद की !-
दिल ईंधन बना है रौशनी को !
ये अंधेरे भी किसी ज़ुल्म-ओ-सितम के लगते है !
दिल लबरेज़ हो गया था मेरा दरिया को देख कर !
अब मेरी फुरात देख कर दरिया भी रोते फिरते हैं !
मेरी ख्वाहिश है के जाऊं कभी अपने घर की अोर !
यार तुम तो घर में ही रहते हो ये दोस्त मुझसे कहते हैं !
मैंने अपने ख़्वाब सारे जला दिए !
उस राख को उड़ाने में भी वे कसर नहीं छोड़ते हैं !
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उल्फत में तेरी मैंने सूरज तुलू किया !
गुरबत तो मेरी देखो के बारिश बहुत हुई !
अफसोस है उसे भी के क़तील है वो मेरा !
खंजर भी मेरी मौत पे गिरिया बहुत करी !
शजरो हजर से पूछ लो हमराज़ हैं मेरे !
एक गम को मुझको रोते हुए मुद्दत बहुत हुई !
लहज़ा भी कितना शख्त है लोगों का क्या कहूं !
जब भी मैं किसी के पास गया जरबत बहुत लगी !
आतिश के मिस्ल था ये ज़ख्म बुरा था !
दिल जिगर जल गए अज़ीयत बहुत हुई !-
मेरे जनाजे में शिरक़त किसी ने नहीं किया !
मैने मेरे वजूद को खुद ही दफन किया !-
मेरे गुलाब में अब कोई खुशबू ना रही !
हां!इसे तोड़े भी तो एक ज़माना गुज़रा !-
बहुत शख्त थी मिट्टी मेरे दिल की !
तुम्हे दफन करने में मुझे मशक्कत बड़ी हुई !-
क्या खुद से भी तन्हा हो चुका हूं मैं !
मेरी सूरत भी मुझसे पहचानी नहीं जाती !-