बाबुल की सांसों के साधन,
मैया के सबल सहारे।
कहीं तुझे नज़र न लग जाए,
ओ मेरे राजदुलारे।-
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कल रात फिर से मुझको वो बिगड़े यार मिल गए,
लगता है कि अब कुछ रोज़ में सुधर जाऊंगा मैं।
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इफ़्तेदा - ए -इश्क में, बे-इल्म तो दोनों ही थे।
तैरना आता न था, और दरिया गहरा था।
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जब तैर कर पार उतर आया दरिया-ए-क़यामत,
अब खौफ़-ए-जुदाई से डरना मुनासिब नहीं होगा।
बस यह ज़ख्म ही बचा है तेरी यादों का अब तो,
खुदाया इस ज़ख्म का भरना मुनासिब नहीं होगा।
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तालाब का था किनारा शाम भी मदहोश थी,
सर्द झोंके ने छुआ सच में तबीयत खिल गई।
मशरूफ़ दानिशमंदों को बता दे सायबा,
छोड़ते ही दीन दुनिया तुझको जन्नत मिल गई।-
जो गिर चुके हैं दरख़्तों से पत्ते,
जुदा हो चुके हैं वो अपने चमन से।
बताते हैं मुझको कहानी किसी की,
लुटा था वहाँ आशियाना किसी का।-
कौन समझा है भला बोलो,
ज़माने की हक़ीक़त को?
कहीं मेले लगे हैं तो,
कहीं पर रंज भारी है।-
क्या शब्द व्यथा कहे पाते हैं?
क्या कविता सच बतलाती है?
छाती फटती है जब दुःख से,
हर कलम धरी रहे जाती है।-
हाथ बढ़ाए जो शिद्दत से, चाँद तोड़कर ला सकता है।
कुछ करने की ज़िद है तो तू,घर में कमल खिला सकता है।-