न तलाश करूं खुद की न दुआ की,
रहमत मैं मांगू,बस माँ की और खुदा की..
उजले अंधेरे में लड़खड़ाती ज़ुबां की,
कहानी हुई वो,तिरी सूरत से जो सुबह थी..
खुद से ही अकेले झगड़ना भी कला थी,
तुमसे बेवजह लड़ने की कुछ तो वजा थी..
निवाला हाथों से मिरे उतरता नहीं अब,
भीगा आंसुओं से अपने,न बारिश न हवा थी..
माँ, मैं करता हूं तमाम गलतियां जान कर,
न डांटने को तू थी न ही तेरी सजा थी..
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