सार्थक सिंह रघुवंशी   ((ईप्सित))
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Joined 28 August 2017


Joined 28 August 2017

When one gets out of its shell,
He enters in the world of ideas..

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क्या व्हिस्की क्या रम,
क्या चरस गांजे का नशा,
बस चाय मेरी हीर हुई,
यही मुझ रांझे का नशा..

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बेशक़ बेहिसाब कमाता हूं मैं,
मगर आज भी मेला घूमने का पैसा तुम ही से चाहिए..

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जनाज़ा

निकले जनाज़ा गर सामने से तुम्हारे,
दबे लहज़े में एक सलाम कर देना..

मरहूम आशिक़ है हुआ मगर इश्क़ नहीं,
उसके इश्क़ का अमर नाम कर देना..

गर उठाए ज़माना उंगली कभी तुम पर,
अलविदा जनाज़े को बदनाम कर देना..

भूल जाना संग लिखे तमाम किस्से सभी,
हो सके तो छोटा से ये काम कर देना..

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न तलाश करूं खुद की न दुआ की,
रहमत मैं मांगू,बस माँ की और खुदा की..

उजले अंधेरे में लड़खड़ाती ज़ुबां की,
कहानी हुई वो,तिरी सूरत से जो सुबह थी..

खुद से ही अकेले झगड़ना भी कला थी,
तुमसे बेवजह लड़ने की कुछ तो वजा थी..

निवाला हाथों से मिरे उतरता नहीं अब,
भीगा आंसुओं से अपने,न बारिश न हवा थी..

माँ, मैं करता हूं तमाम गलतियां जान कर,
न डांटने को तू थी न ही तेरी सजा थी..

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मैं लिख दूं क्या खत उसे,
कलम मिला न स्याही नहीं..

यहीं से वो गुजरती थी रोज़,
हुआ मिलने को तो आई नहीं..

चाहत इतनी थी उनकी हमें,
उनसे नज़रें भी चुराई नहीं..

इशारे नैनों से हुए पूरे सभी,
वो मुस्कराई ,
मैंने झुमकों से नज़रें हटाई नहीं..

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"Golden Arrows"🇮🇳

ललकार गर युद्ध की,
तो जीत हो प्रबुद्ध की..

द्वेष की जो भावना,
जो भावना थी क्रुद्ध की..
तेज़ से भी तेज़ है,
हुंकार ये विरूद्ध की..
मन हो अशांत गर,
हो लालसा भी शुद्ध की..

ललकार गर युद्ध की,
तो जीत हो प्रबुद्ध की..

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गर कल को पूछे कोई,
जो तारा था किधर गया..??

कह देना,
मुस्कुराया - टूटा - बिखर गया..

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I've been thinking about the one,
Who never thought about me..🙂

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मेरी हर बात थी जानती,
जब के मैंने कुछ बोला नहीं..

वो माँ थी जनाब,
कभी शब्दों में उसे तोला नहीं..

क्या शब्दों में उसे मैं उतारूं,
उसके रहते मैं पन्ना कोरा नहीं..

दफ्न हुई जैसे कहानी अनकही,
रही इक राज़ ही जो कभी खोला नहीं..

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