सारिका Joshi नौटियाल   (सारिका जोशी नौटियाल"सारा)
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Joined 6 March 2021


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Joined 6 March 2021

Yqdidi हम कुछ दिन ख़ुश थे और ज्यादा दिन किलसे हुए कमबख्त ये जुलाई भी
कुछ ऐसा गुजरा कि हम देखते रहे
और बारिश करती रही हर जगह मुजरा.... 😄🙏

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मेरा हास्य बोध कहता है
लेफ्ट लेग आगे आगे राईट लेग पीछे पीछे
आजा यारा लेट्स स्टार्ट वे
सर को घुमाले राउंड पैर जरा अप-डाउन
इतनी सी ये बात वे 😂😂

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"पैंतीस में,पैंतालिस के लग रहे हो
लगता है,मोमबत्ती से पिघल रहे हो।
मुरझाया हुआ चेहरा,माथे पर हैं बहुत सारे बल
जिंदगी की भाग दौड़ में,गुजर रहे हैं हसीन पल
"ऐसे ही हाथ मल रहे हो"
लगता है,मोमबत्ती से पिघल रहे हो। 
बेबाक सी हंसी तुम्हारी,कहाँ खो गयी
वो जिंदादिली वो मासूमियत,कहाँ सो गयी
"कितने सालों से ढल रहे हो"
लगता है,मोमबत्ती से पिघल रहे हो।।

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सुन भौतिक जगत के मायूस मुसाफिर
कि वक्त ही तो है गुजर जायेगा
अनजान है नगरी चुनौतियां हैं अनगिनत
थम गया तो कुछ न पायेगा
पहिया समयचक्र का है चला हुआ
सब्र रख पल ख़ुशी का भी ठहर ही जायेगा
समेट ले मुट्ठी भर खुशियाँ इस समय से
यादों के एडिट बॉक्स से तू इन्हे ही तो सुनाएगा

सारिका.....

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सभी मुस्कुराहटें....
मैं जानता हूँ कि सिर्फ इस शहर को बेबकुफ़ बनाने के लिए है
मैं भी यही करूँगा तब तक ज़ब तक सूर्य अस्त नहीं होता
और तब तक ज़ब तक रात नहीं सोती
हाँ मैं तुमसे कहूंगा जो तुम सुनना चाहते हो.. मेरे धूप के चश्मे छोड़ देना उस वक़्त के लिए जिस वक्त मेरे आंसुओं को उनमें छुपने की जगह चाहिए होगी
समय सही कभी नहीं होता(समय सिर्फ समय है गतिशील)
मैंने अपना कवच (दृढ इच्छा शक्ति)पहन लिया है
मैं दिखा दूंगा तुम्हे कि मैं कितना मजबूत हूँ
मैंने अपना कवच पहन लिया है
मैं दिखा दूँगा तुम्हे कि मैं अजेय अविरल हूँ
मैं एक पोर्स(प्रसाद)हूँ जिसका कोई तोड़ नहीं
मैं अजेय अविरल हूँ
हाँ मैं प्रत्येक खेल जीतूंगा
मैं बहुत शक्तिशाली हूँ
मुझे आवश्यकता नहीं खेल हेतु
किसी विद्युत कोष (बाह्य शक्ति)की
मैं बहुत आत्मविश्वासी हूँ
हाँ मैं आज (वर्तमान) के लिए अजेय हूँ
टूटूँगा,
केवल अकेले में जोर से रोऊँगा चिल्लाऊंगा
तुम्हे कभी पता नहीं चलेगा कि मैंने क्या कुछ अपने अंदर छुपाया है कितनी गहराई में छुपाया है
हाँ मैं जानता हूँ.. मैंने सुना है कि अपनी भावनाओं को बहने दो प्रदर्शित करो
केवल यही एक रास्ता है मित्र बढाने
का
लेकिन मैं अभी भी बहुत ज्यादा डरा हुआ हूँ
हाँ,हाँ मैंने कवच पहन लिया है
मैं अजेय हूँ...

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जाने कितने काश रह गए मेरी बातों में मेरी यादों में
हर कोई पल में कह गया .. तुमने किया ही क्या किसी के लिए....

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तू चल मुसाफिर अपने अस्तित्व की खोज में
रैनबसेरे न बना जग में ,तू आमंत्रित नहीं किसी भोज में
न उलझ भौतिक जगत की मिथ्या लड़ाईयों में
न भटक यूँही झूठे लोगों की बड़ाइयों में
भावनाओं के मायाजाल में न फस
व्यर्थ यूँही अब औरों पर न हंस
न रख अब कोई ऐसी राग द्वेष की भावना
कि मुश्किल हो जाए करना ख़ुद का सामना
छोटे छोटे उदेश्य बना और फिर अपना लक्ष्य भेद
कर हर मुमकिन कोशिश रह न जाए कोई भी खेद
भीड़ से हटकर अपनी अलग पहचान बना ख़ुद
तुम्हे तुम्हारी याद दिलाने अब न आयेगा कोई बुद्ध


       सारिका जोशी नौटियाल "सारा "

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देखो न फिर शाम हो चली है
मुझको मेरी नहीं मुझमें ही कमी खली है
जाने क्यों ये शाम हमेशा से
मुझे बस करती है ग़मगीन
जाने क्यों ये सुलूक
जैसे किया हो जुर्म मैंने कोई संगीन
ताउम्र बीत गयी मुन्तज़िर में
उस शाम के जाने वो कहाँ ढली है
देखो न फिर शाम हो चली है
मुझको मेरी नहीं.....
करती हैं बेरुखी मुझसे
करती है अंधेरों के लिऐ मुझे अगुवा
करती है संगदिली मुझसे
करती है उजालों से मुझे रुसवा
हाँ ये शाम मनमौजी मनचली है
देखो न फिर शाम हो चली है
हैं इसके सुबह से सुकून चैन के वादे
देती है दोपहर को तपने के इरादे
खिजा कर हर रोज़ मुझे बस दे जाती है उम्मीद
कि मैं और मेरी अगली सुबह यक़ीनन मखमली है
देखो न फिर शाम हो चली है....
मुझको मेरी नहीं....

     सारिकाजोशीनौटियाल.......

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दौड़ते भागते उम्र की शाम हो गयी देखो
अब तो लौट आओ कुछ देर अपनी बचपन वाली सुबहों में

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मौन चीखें

कुछ चीखें सुनती थी हर रोज़ रात
मैं बंद दरवाजे के पीछे
वो दर्द शारीरिक पीड़ा से ज्यादा
मानसिक पीड़ा की ओर था खींचे
कई बार कोशिश की
कि उस असहनीय दर्द से बात करुँ
कुछ देर ही सही उसे आत्मसात करुँ
दर्द बोला मुझसे यहाँ समय बर्बाद न कर
मुझे हटाने का प्रयास न कर
ज़ब मेरा साथी खुश है मेरे साथ
ज़ब उसे ही नहीं छुड़ाना मुझसे हाथ
तो फिर तेरी कोशिशें हैं एकदम बेकार
ज़ब तक मेरा साथी न चाहे तेरी सहायता नहीं साकार
दर्द बोला मुझे तो आप कर ही दें माफ़
ईश्वर भी सहायता करें उसकी जो अपनी सहायता करें आप
बात दर्द की भी बहुत हद तक सही थी
अंतर्मन झुंझला गया बात उसने ऐसी कही थी


  सारिका.....

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