धुंध में छिपा
पतझड़ सा साथ
रंग प्रेम का।
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पन्ने पर उतरे जरूरी नहीं ,
हर बादल बरसे
जरूरी नहीं।
इश्क़ ए हाल क्या बूझे,
उलझे बेहिसाब सवालों में।
दूरियां मीलों की दरमियान,
हर जवाब उन्हीं के इंतज़ार में।।-
गुनगुनाते अल्फ़ाज़,
कहानी तेरी मेरी कह गए।
ख़ामोश निगाहें,
तस्वीर संग तेरी झलका गए।
उलझी लकीरें,
स्पर्श तुम्हारा सहला गए।
मीलों की दूरियां,
एहसास तेरी मौजूदगी का बता गए।।-
सुलझता दौड़ता हवा की रुख सा दिन गुजरता,
कम्बख़त यादें तेरे मवद्दत (प्रेम) की सिरहाने से भी नहीं हटती।।-
उलझे लफ्ज़ और तराना तुम्हारा!
खामोश खोजती निगाहें और ख़्वाबों में मिलना तुम्हारा,
कोहरे से घिरी राहें और महसूस होता गुनगुना-सा स्पर्श तुम्हारा!!
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कुछ हिस्सों में मिलना तेरा, चाहे अधूरी कहानी के जैसे,
लिखा कुछ पल का साथ ही सही तेरा, ख़्वाब के जैसे ।।-
सुनहरी धूप में खिली छांव को नापते,
चले फिर चले उन पुरानी राहों में।
ना टटोले उंगलियों से सिमटी दुनिया को,
चल फिर बिखरे रंग छुपा ले अपनी आंखों में।-
जाते दिसंबर और आते नए साल में
प्रेम स्पर्श रिश्तों का संभाल रखना अपना।।-
बढ़ी तेरे मेरे बीच की दूरियों में,
ठहरा वक्त आज भी सिर्फ़ तेरा ही है।।-