इज़्ज़त ....
शब्द एक, दृष्टिकोण अनेक
अगर किसी स्त्री के तन को कोई ज़बरन छू ले
या उसे अपनी हवस का शिकार बना ले
तो हमेशा यही क्यूं कहा जाता है कि
सिर्फ़ उस स्त्री की ही इज़्ज़त चली गयी
और पुरुष........
क्या उस पुरुष की इज़्ज़त नहीं जाती ?
यदि स्त्री की इज़्ज़त को उसके तन में समाहित माना जाता है
तो पुरुष का शरीर इससे अछूता क्यूं रह जाता है
या फिर पुरुष के तन में उसकी इज़्ज़त रहती ही नहीं है
या फिर उसकी इज़्ज़त उसके शरीर में ना रहकर कहीं और रहती है
अकसर खबरों में यही सुनाया और दिखाया जाता है कि
युवक द्वारा युवती की इज़्ज़त लूट ली गयी,
तो क्या सिर्फ़ उस स्त्री की ही इज़्ज़त लूटी जाती है,
क्या उस स्त्री के समक्ष उस पुरुष की इज़्ज़त नहीं जाती,
अगर इज़्ज़त शरीर में ही समाहित होता है
तो इज़्ज़त तो दोनों की ही जाती है
फ़र्क तो यही होता है कि
एक की ज़बरन लूटी जाती है
तो दूसरा अपनी मर्ज़ी से लुटा आता है
अगर इज़्ज़त जाने से स्त्री की पवित्रता चली जाती है
उसे इस समाज में उसकी पवित्रता के साथ स्वीकार नहीं किया जाता,
तो जिसने उस स्त्री की इज़्ज़त को तारतार कर दिया
उसे इसी समाज के लोग इतनी आसानी से क्यूं स्वीकार कर लेते हैं
उसके कुकर्म को इसी समाज के लोग इतनी जल्दी क्यूं भूल जाते हैं
जबतक इस ज़मीनी स्तर पर स्त्री - पुरुष समान नहीं हो सकते
तबतक दोनों में समानता की बातें करना व्यर्थ जान पड़ता है
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