साहित्य श्री   (Ashlesha Amber)
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Joined 8 October 2019


Joined 8 October 2019

जब दुप्पटा से सीने को ढका जाता था
एक दौर ये भी है अब चेहरा ढका जाता है

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याद आती हैं
वो दोस्त याद आते हैं
वो किताबे याद आती है
बचपन की वो शरारत याद आती है

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क्यों शांत है क्यों खफा है खुद से
बता दे दुनिया को एक लहर ही काफी है जता दे दुनिया को

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कितने ही दिन कितने ही साल
गुजर गए उसके इंतजार में
वो न आया इस साल भी

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जब होने लगे हम तेरे

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मुझे भी तो बनाया है
उसी खुदा ने

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ख़ामोश हूं कहने सुनने
को कुछ बाकी नहीं
खामोश हूं तुम पहले से नहीं

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ज्ञान का प्रकाश जब होगा

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सुबह उठकर सब काम किया
भोर भाने लगी अब मन को
उठकर पहले सूरज को प्रणाम किया

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वक्त सबका आता है

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