जीवन संशोधन का अगर विकल्प होता
सर्वप्रथम तुमको अपने हिस्से में लिखता-
सरकारी दफ़्तर में बैठे पुरुषों को अधिक सुन्दर माना है
समाज ने घर में बैठे बेरोजगार लड़कों की तुलना में 😔-
जिसके हाथों की पकड़ से चूम सको आसमानों को
इक ऐसे दोस्त की गिरफ्त में रहना तुम
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एक कवि या लेखक मकान या मानवता के निर्माण की नींव का वो पहला पत्थर है , जिससे बहुत बड़ा परिवर्तन देखने को मिलता है
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हृदय पर सबके प्रश्न , खड़ा कर रहा हूं मैं
पैरो पर ख़ुद को अब खड़ा , कर रहा हूं मैं
जिन यारों की नज़र में कुछ नहीं , परिभाषा थी मेरी
देखो आज़ उनसे ही आगे , बढ़ रहा हूं मैं
वो टूट जा रहे हैं , इक कोशिश के वार से
हर बार जीत हार से ख़ुद को गढ़ रहा हूं मैं
हृदय पर सबके , प्रश्न खड़ा कर रहा हूं मैं
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वो मेरे कोई ऐब पे रूठता , तो मनाता उसको
मेरे हुनर से नाखुश जो , मैं बात भी करूं तो क्यों-
कर ईर्ष्या का परित्याग , आओ द्वेष भुलाते हैं
एकाकी राह कब तक प्रिय , साथ आओ ख़ुद को कुछ बनाते हैं-
मुझे भ्रम था
मां कभी झूठ नहीं बोलती
एक रोज़ मैं पहली बार शहर आया था
मां ने कहा था , शहर में सुविधाएं बहुत हैं
मैं शहर में हूं , पर दोस्त नहीं हैं
निसंदेह दो भ्रम टूट गए मेरे
पहला मां भी झूठ बोलती हैं
दूसरा , कभी कभार बोला गया झूठ , झूठ नहीं प्रेम होता है-
निसंदेह पुनः लौट जाना चाहिए बिना बताएं तुम्हें उस जगह पर
जहां से बिना बताएं तुम कहीं से लौट आएं हो-
टपरी पे दो विपरीत लिंगी लोग चाय पी रहे थे
ये पहली ऐतिहासिक जीत थी , विकृत मानसिकता वाले लोगों से-