हृदय पर सबके प्रश्न , खड़ा कर रहा हूं मैं
पैरो पर ख़ुद को अब खड़ा , कर रहा हूं मैं
जिन यारों की नज़र में कुछ नहीं , परिभाषा थी मेरी
देखो आज़ उनसे ही आगे , बढ़ रहा हूं मैं
वो टूट जा रहे हैं , इक कोशिश के वार से
हर बार जीत हार से ख़ुद को गढ़ रहा हूं मैं
हृदय पर सबके , प्रश्न खड़ा कर रहा हूं मैं
-